।। पहली रचना ।।
लगता है तुम आ रहे हो।
खुशबू का यूं फिजाओं में बिखरना...
ओंस की बूंद का मोती बन ठहरना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।
सर्द हवा और बारिश का बरसना...
मुरझाए पौधो में फूलों का खिलना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।
बरसाती शाम और सावन का महीना..
गुनगुनाती धूप और शाम का ढलना..
लगता है तुम आ रहे हो।
दिल में उमड़ रहे जज्बातों का थमना..
आंखो से आंसू का बहना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।
होठों पे मेरी मुस्कुराहट का उभरना..
धड़कनों का तेजी से धड़कना..
लगता है अब तुम आ रहे हो।
लेखिकाः सोना मौर्या
।। दूसरी रचना ।।
जनता जाए भाड़ में
देशभक्ति की आड़ में
कुछ लोगों ने अपने लिए जुटाई
सारी सुख-सुविधाएं,
बाकी बची जनता सब वस्तुओं पर
टैक्स भर-भरकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।
राष्ट्रवाद की आड़ में
कुछ लोगों ने अपनी तानाशाही
सबके ऊपर चलाई,
बाकी बची जनता आपस में
लड़-झगड़कर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।
जनसेवा की आड़ में
कुछ लोगों ने सिर्फ धनिकों के लिए
हितकारी नीतियां बनाई,
बाकी बची जनता अभावों से
निपट-निपटकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।
धर्म-रक्षा की आड़ में
कुछ लोगों ने इंसान-इंसान के बीच
जमकर नफरत फैलाई,
बाकी बची जनता उसकी आग में
जल-जलकर
झोंकती रही खुद को भाड़ में।
लेखकः जितेन्द्र 'कबीर'
।। तीसरी रचना ।।
मैं
काश मैं भी होती
एक पुस्तक की भांँति तो
पढ़कर समझ पाती अपने गुजरे हुए कल
आने वाले वर्तमान और भविष्य से
और सुधार पाती मैं अपनी
गलतियों को अतीत के पन्नों से
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भांँति...
समझ पाती अपनी वर्तमान की परिस्थितियों को
और गढ़ पाती अपने स्वर्णिम भविष्य को
काश मैं भी समझ पाती उन रिश्तों को
जो कहने को तो अपने हैं पर बस कहने को
और समझ पाती अपने लिए उनके विचारों को
काश मैं भी होती एक पुस्तक की भाँति...
कुछ सीख लेती यदि मैं अपने
गुजरे हुए कल और वर्तमान से
तो सरल, सहज और व्यक्तित्व विकास के लिए
गढ़ लेती अपने लिए एक सुंदर भविष्य को
काश मैं भी होती एक पुस्तक भाँति...
लेखिकाः डॉ.सारिका ठाकुर "जागति"
।। चौथी रचना ।।
अंतिम मित्र
सुनो! अपने मित्रो की सूची में
मेरा नाम अंतिम पंक्ति में रखना
मेरे नाम के बाद कोई नाम ना हो।
भगवान ना करे कभी तुम्हें
कोई परेशानी घेर ले ,और
दूर-दूर तक कोई उम्मीद की
किरण नज़र ना आये।
जब सब अपनो को
तुम परख लो।
तब तुम बेझिझक हक से
मुझको याद करना।
अपनी अंतिम उम्मीद के साथ
मुझको याद करना।
मेरा वादा है
एक दोस्त का दूसरे दोस्त से
तुम को मैं कभी
निराश नहीं करूंगा ।
तुम्हारी तकलीफों , परेशानियों को
अस्त कर , मैं तुम्हें
नया सवेरा , नई किरण देने का
प्रयास करूंगा , पूरा पूरा प्रयास करूंगा।
लेखकः कमल राठौर साहिल
।। पाँचवी रचना ।।
रंग बिरंगी होली आयी
रंग -बिरंगी देखो आज होली है आयी,
सबके चेहरे पे आजखुशियां है लायी।
सब बच्चों को होलीआज खुब है भारी,
सुबह से शुरू हो हमारी जाती होली।
भक्त प्रहलाद की बात याद है आयी,
अवगुणों पर गुणों की जीत फरायी।
इन रंगों ने प्रेम स्नेह की गंगा हैं बहायी,
खुशियों की सुबह है आज देखो आयी।
रंगों के रंग में सजी दुनिया आज सारी,
बच्चें बुढ़े सब कर रहे होली की तैयारी।
काव्य सम्मेलन की सज गई महफ़िल,
सब मिलजुल कर बनो प्यार से होली।
नफरतों को भुलाकर सबने मिस्री घोली
पिचकारी लिए निकल पड़े सारी मंडली
छुन्नु मुन्नू की टोली आज हुई मतवाली,
देवर भाभी जी संग करें आज ठिठोली
रंग बिरंगी देखो आज होली है आयी,
देवर भाभी जी संग खुब होली खेली।
रंग बिरंगी देखो आज होली है आयी,
सबके चेहरे पे आज खुशियां है छायी।।
लेखिकाः कुमारी गुड़िया गौतम
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