साहित्य चक्र

10 February 2022

कविताः पिताजी कहते थे




पिताजी कहते थे 
राह हो कठिन
विपरीत हो वक़्त
चाहे काली अंधेरी रात हो
सुबह की उम्मीद रख
तू हौसला रख , हौसला रख।

पिताजी कहते थे
इस रंग बदलती दुनिया मे
तू भी अपना एक रंग रख
आवेश के घोड़ो की लगाम
अपने हाथों में रख 
वक़्त ही तो है बदल जायेगा
तू हौसला रख , हौसला रख।

पिताजी कहते थे 
नाज़ुक रिश्तों को 
तिजोरी में रख
रूट जाए अगर अपने तो
मनाने का दम रख
तेरे अपने ही तेरे 
जीवन की दौलत है
इन से ना कभी फ़ासला रख
तू हौसला रख , हौसला रख।

पिताजी कहते थे
अपने कर्मो को इबादत की
तरह पवित्र  रख
बंजर भूमि में भी हरियाली आयेगी
ऊपर वाले पे भरोसा रख
तू हौसला रख , हौसला रख।

पिताजी एक दिन
काली अंधियारी रात में 
छोड़ कर चले गए
यादों में रहैंगे ज़िन्दगी भर
सफर तू निरन्तर जारी रख
तू हौसला रख , हौसला रख।


                        कविः कमल राठौर साहिल



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