तू तो ठहरा दरबारी,मेरा दरबार से कोई सरोकार नही
मैं राजा का महिमा-गान करने वाला कोई फनकार नही।
राजा के क़सीदे लिखने से कर सकता तू इन्कार नही
मेरे जीवन-वृत्तान्त में लिखा राजा से करना इकरार नही।
राजा की रोटी पर पलने वाला तू करेगा तिरस्कार नही
हासिल करना है हमे अपयश वाला कोई पुरस्कार नही।
तेरे रग में नि:सहाय जनता का करना उपकार नही
मुझे राजा के साज़ का बनना सम्मोहक झंकार नही।
तू दिखला सकता राष्ट्र के सगरी मनुज की पुकार नही।
मैं राजा से कर सकता कभी ऐसा आततायी इसरार नही।
मेरी फितरत में है,देवतुल्य मनुज का सुनना फटकार नही
तेरी कलम कभी लिख सकती,बेबस लोगों की चीत्कार नही।
आशुतोष यादव
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