साहित्य चक्र

26 September 2020

आपके ये आँसू




अपना गुनाह छुपाने को कोई गिरेबाँ ढूँढिए 
जो कुछ भी ना कह सके,वैसी जुबाँ ढूँढिए

हमें बुरी  आदत  है सच  को  सच कह देने की
जो सच को झूठ कह सके,कोई मेहरबाँ ढूँढिए

चमन  में  गुल   खिला   करते  हैं  हर  रंगो - बू  के
जो गुलशन को मसान कर सके,वही बागबाँ ढूँढिए

ये  लोकशाही है , यहाँ सबकी सुननी पड़ती है
मुर्दों पर राज़ करना हो तो फिर बियाबाँ ढूँढिए

आपके ये आँसू भी आपके दाग धो नहीं पाएँगे
नदामत*  की  खातिर  आब - ए - रबाँ*  ढूँढिए

फसाद से कभी अमन  की खेती नहीं की जाती है
अपनी हस्ती गर बचानी हो तो,नया उनवाँ* ढूँढिए

*नदामत- पश्चाताप
*आब-ए-रबा- बहता हुआ पानी
*उनवाँ- प्रकार

                                                    सलिल सरोज

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