साहित्य चक्र

06 September 2020

" हकीकत -ए-ज़िन्दगी"





ज़िन्दगी एक रंगमंच है,
यहाँ मिलते बड़ी तंज है।

जहाँ मार्तण्ड का होता अस्त है,
वही कुमुद हो उठता मद-मस्त है।

जहाँ ज्योति का हुआ खात्मा,
वही सजीव हुई तिमिर की आत्मा।

कोई बूँद-बूँद पानी भरे गागर में,
नदी अगाध जल छोड़ आती सागर में।

कोई पैसों खातिर निस चमड़ी घिसता है,
किसी की चमड़ी पर पैसा ही बिछता है ।

कही बज रहे निस-दिन बिजयी-गीत,
किसी की वांछा,हौसलों को कर रही चित।

   
                                  आशुतोष यादव


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