साहित्य चक्र

13 September 2020

मेरी अनकही बातें




मेरी डायरी के वो पृष्ठ
जिसमें क़ैद थी
मेरी अनकही बातें
कभी-कभी रात के सन्नाटे में
आती है उन पन्नो से
कुछ आवाज़ें,,
जो मुझे अपने पास बुलाती हैं।
जैसे ही
मै उनके पास पहुँचती हूँ
और उन पृष्ठों से
बातें करना शुरू करती हूँ ...
खो जाती हूँ .....
अपनी उस काल्पनिक दुनियाँ में
जहाँ ....!
व्यक्ति पर किसी जाति,
या धर्म का आवरण नही।
लोगों में एक दूसरे के प्रति प्रेम है
ना की द्वेष,,
वहाँ प्रेम को घृणमयी दृष्टि से नही देखा जाता।
डायरी के उन पृष्ठों से बातें करते
कब सुबह हो गयी पता नही चला..।
और मै फिर से पहुँच गयी
उसी दुनियाँ में ..!
जहाँ प्रेम,त्याग,अहिंसा,धर्म जैसे
शब्दों की जगह घृणा,द्वेष,हिंसा
कट्टरता और आतंकवाद ने ले ली है।

                                                श्रद्धा मंजू


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