लगा मुखौटा राम का देखो
घूम रहे अनगिन रावण हैं
छल-प्रपंच से लिखी जा रही
कलयुग की रामायण है
मकड़जाल अंतस में फैला
मुखमंडल किंतु पावन है
है नागफनी नैनों में जिसके
जिह्वा पर उसके सावन है
अजान सुनाता गिद्ध है देखो
गिरगिट करता हरिभजन है
लिखे लोमड़ी गीत प्रणय के
पीत वसन सियारों के तन है
सत्ता-शासन का खेल पुराना
भटक रहा सच वन-वन है
भिक्षा माँग खाए युधिष्ठिर
मौज उड़ाए दुर्योधन है
मानव लड़े मानव से देखो
लकीर खींची हर आँगन है
जाति धर्म के नशे में उन्मत्त
अब्दुल्ला और मोहन है
लगा मुखौटा राम का देखो
घूम रहे अनगिन रावण है
छल-प्रपंच से लिखी जा रही
कलयुग की रामायण है
अर्चना गुप्ता
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