ये हुनर भी आजमाए कोई !
फसाना नहीं अब हक़ीकत सुनाए कोई !!
बिना साज़ के एक गीत की हसरत !
रात के सन्नाटे में बारिशों को बुलाए कोई!!
बिना परों के उड़ता फिरता है!
ख़ुद को ज़माने की हवा लगाए कोई !!
उलझे सिरे सुलझाने का सलीक़ा रखिये !
ग़र हसरतें हैं ,पतंगें उड़ाए कोई !!
लुटाई वही जो कमाई जिसने !
दौलत, मुहोब्बत ठिकाने लगाए कोई !!
कविता
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