साहित्य चक्र

09 September 2020

कोई !

ये हुनर भी आजमाए कोई !
फसाना नहीं अब हक़ीकत सुनाए कोई !!

बिना साज़ के एक गीत की हसरत !
रात के सन्नाटे में बारिशों को बुलाए कोई!!

बिना परों के उड़ता फिरता है!
ख़ुद को ज़माने की हवा लगाए कोई !!

उलझे सिरे सुलझाने का सलीक़ा रखिये !
ग़र हसरतें हैं ,पतंगें उड़ाए कोई !!

लुटाई वही जो कमाई जिसने !
दौलत, मुहोब्बत ठिकाने लगाए कोई !!


कविता


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