साहित्य चक्र

13 September 2020

देश के असली हीरो


मैं कोई डॉक्टर तो नहीं...
मैं कोई सैनिक तो नहीं...
मैं कोई राजनेता तो नहीं...
मैं कोई अभिनेता तो नहीं...



मगर हां मैं अपने परिवार का एक हीरो हूं। यह मुझे मेरे परिवार के लोग तब कहते है, जब मैं हर रोज देश की गंदगी साफ कर घर जाता हूं। होने को मैं एक मामूली इंसान हूं, मगर फिर भी मैं अपने परिवार के लिए महान हूं। मेरे बिना एक चपरासी से लेकर प्रधान सेवक तक का काम नहीं हो सकता है। मुझे फिर भी अपने कार्य पर घमंड और अहंकार नहीं है। हां दुख जरूर है, क्योंकि मेरा समाज मुझे एक अलग निगाहों से देखता है। पता नहीं मैंने ऐसा क्या किया हां बस बिना सोचे समझे सीवर लाइन और टंकी में कूद जाता हूं। शायद मेरा काम है मेरे लिए श्राप और कुछ लोगों के लिए पाप है।


मैंने लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए देखा है। मगर आज तक हमारे अधिकारों की लड़ाई किसी ने नहीं लड़ी चाहे वह राजनीतिक पार्टियां हो, मीडिया हो या फिर एनजीओ हो। सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए, बिना सुरक्षा उपकरणों के हम सीवर लाइन और टंकी में कूद जाते हैं। कभी-कभी तो वहीं दम तोड़ जाते हैं, ना लाश घर वालों को मिल पाती है, ना ही कोई आर्थिक मदद मिलती है। मैंने लोगों को अपने काम पर घमंड करते हुए और शान से बोलते हुए देखा है। जब भी मैं बोलता हूं तो लोग दूर भागना शुरू कर देते हैं। मुझे आज तक समझ नहीं आया आखिर मेरे साथ ऐसा अन्याय क्यों होता है..?




हां मैं किसी मंदिर का पुजारी और किसी मस्जिद का मौलवी तो नहीं हूं। जो करता तो कुछ नहीं है, फिर भी लोग उसे पता नहीं क्यों इतना बढ़कर समझते हैं। मैं कर्म का पुजारी हूं अपना कर्म करता हूं। मेरी श्रद्धा भी अपने कर्म पर ही है। अपने कर्म के लिए दिन-रात संघर्ष करता हूं और लड़ता हूं, मगर कभी भी किसी से भिक्षा नहीं मांगता हूं। नहीं आता मुझे पाखंड के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाना। कभी-कभी सोचता हूं क्यों इतनी मेहनत करूं..? किसी स्थान पर दो पत्थर खड़े कर अपने पाखंड का खेल शुरू कर दूं। फिर सोचता हूं मेरी आने वाली पीढ़ी मुझे विकलांग और कर्म हीन कहकर अपमानित ना करें। भले ही यह समाज मेरे से कितनी ही घृणा ही क्यों ना करें..?


दीपक_कोहली


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