साहित्य चक्र

13 September 2020

मित्र - समर्पण



मँझधार में जब पड़ा हो जीवन
दे पग-पग साथ रख निर्मल मन
संबंध भले ही कोई ना उनसे
पर बाँध रखे स्नेहिल-सा बंधन
......हो यही एक मित्र - समर्पण

ईश्वर का बनाया अनमोल बंधन
हर परिस्थिति संग रहे आजीवन
जीवन सुरभित , हर्षित हो जाए
हिय के द्वार जब रखे कदम
........हो यही एक मित्र - समर्पण

जर्जर मानस हो या आहत मन
पतझड़ को भी बना दे मधुबन
स्नेह की अविरल सरिता से
सींचित कर दे उर का निर्जन
.........हो यही एक मित्र - समर्पण

हर खुशियों का होता जो दर्पण
सुख-दुःख संग होता अनुबंधन
उर की हर पीड़ा को पढ़ ले
नेह का ऐसा बँधा हो बंधन
........हो यही एक मित्र - समर्पण

ना हो जाति- पाँति का बंधन
साथ चले गर पथ हो दुर्गम
हृदय के हर अंश खिल जाए
ज्यों कृष्ण-सुदामा का संगम
.......हो यही एक मित्र - समर्पण

गर नाउम्मीदी से भरा हो दामन
दूर करे हर विपदा का क्रंदन
अंतर्मन को कर वो आलोकित
शब्द-शब्द बहाए गंगाजल पावन
.......हो यही एक मित्र - समर्पण

                                             अर्चना गुप्ता



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