साहित्य चक्र

06 September 2020

#केश

।। दोहा ।।

01
चितवन चपला सी लगे,अधर लगे मधुमास।
केशों में काली घटा,काया में रति वास।।
02
अलकें मेरी चूमकर,उठी घटा घनघोर
मयुरा सा मन नाचता, ढूँढे चित का चोर
03
अलक पलक मिल कर करें,साजन को बेचैन
उनके मन की रागिनी, नैनों का मैं चैन
04
भीगे मेरे केश जब,बदले मौसम चाल
शृंगारित मदमस्त हो,बादल करे धमाल
05
केश राशि अनुपम गहन, औ ये तेरा रूप।
जैसे सावन की घटा, औ हो निखरी धूप।।
06
केशों की ये कालिमा, छायी गोरे गात।
जैसे पूनम चंद्र हो, बीच सुहानी रात।।
07
केश पाश मन पर पड़ा, उलझा इनमे चैन।
अब तो चेहरे से हटा, राह तके ये नैन।
08
गंधिल केशों की महक, औ कजरारे नैन।
दोनो मिलकर लूटते, मेरे मन का चैन।।
09
कजरारी कारी घटा, है या तेरे केश।
मन का मेरे पास अब, बचा नहीं लवलेश।।
10
कुंतल केश कमाल के, हर इक बल में पेंच।
पवन चले मंथर हिले, बरबस दिल ले खैंच ।।

रागिनी स्वर्णकार


No comments:

Post a Comment