साहित्य चक्र

17 September 2020

कैसा मजाक किया..?




आज ज़िन्दगी ने मेरे साथ देखो ना…! 

कैसा मजाक किया..?

 

मैंने पाई-पाई कर जो पूंजी जोड़ी 

देखो ना..! आज कैसे वह धूँ-धूँ  करके जली..।


मैंने हर रोज सुबह से शाम तक ईंटें ढोएँ

ऐ दुनिया वालों आज देखो ना…!

जिंदगी ने मेरे साथ कैसा मजाक किया..?


मेरे ही आँखों के सामने धूँ-धूँ कर जल गई

मेरे मेहनत और पसीने की मेरी मड़ई


माना मैं गरीब था, मगर इतना भी नहीं.. 

कि कोई मेरी झोपड़ी को खरीद सकता था।


मैं हैरान था, जब मेरा आशियाना जल रहा था।

ना जाने क्यों मुझे कहीं से पैसों की बू आ रही थी।


बस यह सोच मेरी दिल हैरान था..

क्या चंद चीजें ही मेरी पहचान थी। 


आखिर उन्हें ऐसा क्यों लगा कि मेरी मड़ई

महज उनके भीख की चंद रूपयों की भई…


हाँ हमारी मड़ई हमारी पहचान हैं

उनसे जाकर बोल हम भी इंसान है...


आज ज़िन्दगी ने मेरे साथ देखो ना…! 

कैसा मजाक किया..?


पूजा कांडपाल


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