क्या कहा.....आसां है
काश इल्म होता तुम्हें....
शुरू से शुरू वो हर बात करना
तेरी यादों का हर इक हिसाब करना....
फिर से इक नए घर को बना कर
पलकों पर बिखरे ख़्वाबों का लिहाज करना....
हर रोज़ शब ढलते ही, नए सहर के इंतज़ार में
महज़ चांद को तक कर, नींद से फ़िराक़ करना....
यकीनन उक़्दा-ए-मुश्किल है ये, जितना तेरे जाने पर,
इन आंखों को आंसुओं से निजात दिलाना...
काश इल्म होता तुम्हें.....!
शेजल
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