युगों-युगों से
अडिग खड़े हो,
भयंकर आँधियों में,
भीषण तूफ़ानों में,
बारिशों में,
विनाशकारी ओलावृष्टियों में,
और तनिक भी न हिले
हलाचला आने के बाद भी नहीं,
प्रतिवर्ष, प्रतिदिन
प्रतिपल
देते रहे तुम,
शीतल छाया, प्राणदायिनी वायु
सभी को,
और देते रहे
अनुमति पक्षियों को,
घोसले बनाने की
अपनी विशाल शाखाओं पर
बाँधें रहे मिट्टी के
एक-एक कण को,
अपनी जड़ों से,
ऐसी श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम,
निस्वार्थ सेवा पर,
हे बरगद के प्राचीन विशाल वृक्ष
मैं अलंकृत करता हूँ तुम्हें
पद्मश्री, पद्मविभूषण तथा
भारत रत्न जैसे
सूक्ष्म पुरुस्कारों से..
गौरव हिन्दुस्तानी
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