साहित्य चक्र

26 September 2020

अश्क



 
अश्क आंखों में जमकर रह गए है।
कुछ यादों के किस्से पुराने थम गए है।

अश्क आंखों में जमकर रह गए है। 
जिंदगी जब सोच में बैठती है।
कितनी बातों के,  अफसाने तन के रह गए है।

अश्क आंखों में जमकर रह गए है।
याद रहता नहीं है ,यह जानता हूँ।
फिर क्यों उन बातों को मैं भूलता ही नहीं हूँ।

वो बातें, वो यादें..... जिनसे,
कभी अश्कों से भीग जाता था।
आज सोच के सफर में थम से गये है।

 सोचता हूँ......?
आकर आंखों में, क्यों जम से गये है।


                                           प्रीति शर्मा "असीम"


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