साहित्य चक्र

06 September 2020

गाँव से शहर


                

गाँव !


ज़िंदा हैं,, 

सिर्फ़ हमारी यादों में 

हमारे सपनो में

क्यूँकि,,,


गाँव को छोड़कर  हमने 

उस रंगीन,मतलबी शहर को 

अपना बना लिया 

जहाँ की आबों हवा में 

हम इतने खो गये 

की !


अपने गाँव की भाषा , 

पहनावा ,रहन सहन 

सब कुछ भूल गए है!

भूल गये है...कि

हमारे पूर्वजों ने 

अपनी पूरी ज़िंदगी 

लगा दी 

अपने संस्करों को ज़िंदा 

रखने के लिए,,!


अरे भले मानुष मत भूलो

उस मिट्टी को 

जहाँ जन्म तुमने ये पाया है ,

नही तो एक दिन ये ख़ूबसूरत 

सी दिखने वाली 

ये मायावी दुनिया 

तुमको निगल जाएगी

देख लो शहर को तुमने

बनाया और शहर ने 

आज तुमको बेघर कर दिया 


                              श्रद्धा मंजू



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