साहित्य चक्र

28 June 2020

किताबों में ही मिलती है





मुझे हरपल ये लगता था, कि ये अहसास की बातें..
किताबों में ही मिलती है....!

भला इनका हमारी जिंदगी से वास्ता क्या है.
मोहब्बत का इबादत से बताओ राबता क्या है,
कि इन बेकार की बातों से तो दुनिया नहीं चलती.
हक़ीक़त में ख़यालों की सिफ़ारिश भी नही चलती
मुझे दुनिया की हर एक रस्म से आज़ाद रहना था
मोहब्बत का कोई भी ग़म न सहना है, न सहना था
कभी पलकों को अश्कों से भिगोया ही नहीं मैंने
किसी अहसास को सिर पर बिठाया ही नहीं मैने.
तो फिर कैसे वो मेरी ज़ात का मानी बदल बैठा
भला कैसे वो मेरी रूह की परतों में ढल बैठा
अभी तो साथ उसके चंद लम्हे ही बिताये है
तो फिर चैन-ओ-सुकूँ क्यूँ कर मुझे लगते पराये है.
मै अब बेचैन रहता हूँ....

कि उसकी आँख में भूले से भी आँसू नहीं आये
मुझे वो भूलकर राहे सफ़र में आगे बढ़ जाये
करूँ मैं क्या कि उसके दिल से मेरा नाम मिट जाये
बहारें ही बहारें हो किसी भी राह वो जाये
मैं आँखें बंद कर उसको दुआयें जब लगा देने
तो फिर पलकों की कोरों से ये पानी क्यों लगा बहने
मैं अपने दिल के हाथों किस तरह मजबूर हो बैठा
जो मेरी जिंदगी था मैं उसी से दूर हो बैठा
मैं अब कैसे कहूँ उससे, मुझे तेरी ज़रूरत है
मेरे अहसास के मंदिर में बस तेरी ही मूरत है
चले आओ कि अब तक उम्र तनहा ही गुज़ारी है
चले आओ कि धड़कन में अजब सी बेकरारी है
सफ़र में प्यार के दिलबर मैं पीछे छूट ना जाऊँ
मुझे तुम थाम लो आकर कहीं मैं टूट ना जाऊँ.
जो गल़ती हो गई मुझसे वो गल़ती तुम ना दोहराओ
कहीं ना देर हो जाए मेरी जाँ लौट तुम आओ.
मेरी साँसो मे धड़कन में तेरे दम से हरारत है
ये मेरी रूह कहती है मुझे तुमसे मुहब्बत है..
मुझे तुमसे मुहब्बत है...


शीतल वाजपेयी




गीतिका



चाहें जितना बचाओ जितना लगा लो नारे।
हर कदम यहाँ पर बेटी ही छली जाती है।

न हो ग़र नारी तो कैसे सृष्टि की हो रचना।
ये बात किसी को भी समझ नहीं आती है!

चाहें बेटी बचाओ या पढ़ाओ का हो नारा।
इल्ज़ाम सब जहाँ के नारी पे मढ़ी जाती है।

कैसे कहूं की न्याय हो रहा है इस जहाँ में।
क़ानून की भी जेब तो पैसे से भरी जाती है।

बेटे बेटी में नहीं है भेद भाव कहते हो तुम!
कोख़ में भी भ्रूण कन्या ही तो मारी जाती है!

परचम लहरा रही है हर क्षेत्र में अब बेटी।
युगों युगों से नारी अबला ही कही जाती है!

मिटा देती है ख़ुद का वज़ूद भी वो अपना।
फ़ना करने ख़ुद को समंदर में नदी जाती है!

चेहरा बदल बैठे हैं हर मोड़ पे दुःशासन!
मासूम बेटियों की अस्मत लूटि जाती है।

संस्कार सभ्यता की लिए साथ में धरोहर!
हर रूप में ये नारी रिश्ता निभा जाती है।

@ मणि बेन द्विवेदी


मुक्तक



तेरी हर मुलाकातें मुझे सदा याद आती है
चलती हुई घड़ी में तेरी ही आवाज आती है
लगती है मुझे वैसी तुझे भूल नहीं पाऊंगा
कुछ ही महीनों में तू मुझे क्यों भूल जाती है?


सनम से मिलने मैं हर रोज तो मन्दिर जाता हूं
इशारों वक़्त सब के नजरों में मैं गिर जाता हूं
तरुनाई का इश्क़ ही अंत जीवन का निशान है
इश्क़ का इल्ज़ाम लगा कर घर आखिर जाता हूं।


पहली  मोहब्बत  में  मशहूर  हो गया हूं मैं
मोहब्बत  में  परिवार  से  दूर  हो गया  हूं  मैं
इश्क़,मोहब्बत की किस्सा तो मुझ पता नहीं थी
अब पढ़ने-लिखने में भी मजबूर हो गया हूं मैं।


अरमान है, तुझे पाने तभी तो याद करता हूं
इश्क़ को समझा हूं, तभी तो वक़्त बर्बाद करता हूं
जो इश्क को समझता, वो दौलत को नहीं समझता
दूर हो कर भी मैं कभी नहीं फरियाद करता हूं।

                                          अनुरंजन कुमार "अंचल"


"बेटे भी घर छोड़ते है"



ये भाग- दौड़ के किस्से अजीब होते है,
सबके अपने उद्देश्य और औचित्य होते है।
कभी शिक्षा कभी जीवन की नव आशा मे,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी घर छोड़ते है।

जीवन मे सबके अजीब उधेड़बुन होती है,
समस्याओं की फ़ौज सामने खड़ी होती है।
गुजरना पड़ता है जब विपरीत परिस्थितियों से,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी प्रताड़ित होते है।

जब सफलता और रोजगार की बात होती है,
असफलता पर जब कुण्ठा व्याप्त होती है।
सारे प्रयास और प्रयत्न होते है जब निरर्थक,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी खूब रोते है।


घर से दूर रहकर सब तकलीफें सहते है,
कभी खाते है कभी भूखे भी सो जाते है।
जी भरकर देखते है तस्वीर माँ- बाप की,
सिर्फ बेटियाँ ही नही,बेटे भी सम्मान करते है।


                              अभिषेक शुक्ला 'सीतापुर'


#धरती_माँ_की_चुनर



पर्यावरण बनता है प्राकृतिक अवयवों से
हवा से,पानी से,मृदा से,वन बागों झरनों से

बसुंधरा की हरीतिमा पर्यावरण बनाती है
आज धनलोलुपता ने पर्यावरण बिगाड़ा है

विकास की अंधी दौड़ विकृत कर डाला है
आज हवा, पानी, मृदा सब विकृत रूप है

भूजल का स्रोत तेजी समाप्त होता जा रहा है
आज हवा में रसायनिक जहर घुलता जा है

मिट्टी अपनी उर्वराशक्ति खोती जा रही है
कल कारखानों के शोर ने बहरा किया है

मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर है! 
ऐसे हमारी धरती शस्यश्यामला कैसे होगी! 

#धरती_माता_की_चुनर के दाग कैसे मिटेंगे! 
जीवों का भविष्य कैसे टिका रह पायेगा! 

गिद्ध चील इस धरती को छोड़ चुके हैं!! 
गौरेया अब कहीं नजर नहीं आती है!!

धरती माता अब बांझ होती जा रही है!! 
पर्यावरण संरक्षण अब कैसे होगा!!


                                   डॉ कन्हैयालाल गुप्त #किशन


चीनी धोखेबाज


दश ग्राम का चेहरा लेकर, एक ग्राम की नाक,
हिंद के बीस शेर मारकर छेड़ दिया संग्राम।
अभी वक्त है हांथ जोड़ ले वरना मिट जायेगा,
मान गया तो ठीक नहीं, धरणी से मिट जायेगा।।

चपटी नाक लिये फिरता है थबरे भर का प्राणी है,
बौने तुमने दुस्साहस की परिणाम सुखद ना पायेगा।
हांथों में हथियार आधुनिक जिगरा सवा किलो का है,
एक के बदले दश चीनी धरती में गाड़ा जायेगा।।

अहंकार अब हुआ तो सुन ले चीनी धोखेबाज,
गर्जन से मिटने वाला तू पैरों से कुचला जायेगा।
गलती कर दी, गलती कर दी, हद में ही था रहना,
भड़क उठी क्रोध की ज्वाला इसमें तू जल जायेगा।।

                                           प्रदीप कुमार तिवारी


हाँ वो तुम थे




आज मैंने कुछ लिखा शायद वो तुम थे
हर शब्द में लिपटे वो बातों मे तुम थे
वो अहसास जो कह रहा है मुझे लिखो
ध्यान से सुनना क्या वो अहसास तुम थे
किसने पकड़ी हैं मेरी अँगुलियाँ ज़ोर से
कलम से लिखे इन शब्दों मे तुम थे
जब भी चाहो मुझे तुम लिखना सिखा दो
लिखने की हर इक विधा मे तुम थे
फ़िर भी लोग कहते हैं कि तुमने लिखा है
उन्हें क्या पता जो लिखा है वो तुम थे ।।


                                             प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"


किसे ......चुनें



जिंदगी अगर खुद को चुनती। 
फिर वो मौत का फंदा ना बुनती।

 जिंदगी अगर खुद को चुनती। 
 दूसरों पर रखी ,
उम्मीद जब है थमती ।।

खुद को हार कर,
जिंदगी की आस जब है जमती।।

 जिंदगी अगर खुद को चुनती। 
फिर वो मौत का फंदा ना बुनती।।

 जिंदगी अगर खुद को चुनती। 
 कर खुद पर भरोसा ,
 जब तक,
 सांसों की डोर है चलती।।

 साथ अपने हिम्मत से,
 हर बात है बनती ।

मुश्किलें दौर भी, 
आकर  चला जाएगा।
 बदल अपनी सोच ,
सब कर है सकती ।।

खुद से जो फिर हार गया,
अपने सामने ही,
 हथियार डाल गया।
 मौत उसे है चुगती।।

जिंदगी जब खुद को चुनती।
फिर वो,
 जिंदगी की कहानियां ही बुनती।।


                                          प्रीति शर्मा "असीम" 


सीएम राइस प्रशिक्षण पर मेरे विचार..



निश्चित ही चिंतन " प्रभावी शिक्षण का आधार हैं " । शिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया हैं जिसमें बहुत से कारक शामिल होते हैं । सीखाने वाला जिस तरीके से अपने योजित लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए नया ज्ञान,आचार -विचार और नवाचार कौशल को समाहित करता हैं ताकि उसके सीखाने के अनुभवों में विस्तार हो सके । लेकिन मैंने जब cm rise के इस प्रशिक्षण को किया तो इस प्रशिक्षण में बताएं चिंतन के 6 स्तरों ने काफी प्रभावित किया जो मुझे अपनी शाला के उन आखरी पंक्ति में मौन बैठने वाले बच्चों व शरारती बच्चों  की ओर ले जाता हैं जो चिंतन का विषय रहा,जिसके लिए मैंने सबसे पहले ऐसे बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर दिए ,कक्षा प्रतिनिधि की जिम्मेदारी प्रदान की ,शाला की हर गतिविधियों में इनकी भागीदारी सुनिश्चित की ....देखते ही देखते बदलाव के सुखद परिणाम आए आज शाला के सभी बच्चे भयमुक्त और आनंद के साथ कक्षा कार्य हो या गृह कार्य हो या फिर चाहें शालेय गतिविधियां ही क्यों न हों उत्साह के साथ प्रतिभाग करते हैं । जो मन को सुकुन देता है कि हमारा चिंतन ही हमारे कार्य को चेतन करता है । 


डॉनल्ड शून ने सच ही कहा कि :- चिंतनशील शिक्षण की मदद से शिक्षक अपने छिपे ज्ञान के बारे में सजग हो पाते हैं और अपने अनुभवों से सीख पाते हैं । समझ का विकास निरन्तर बढ़ने-लिखने ,स्वयं के चिंतन करने,दूसरे के विचारों को सुनने,समस्याओं का विश्लेषण करने ,विचारों का संश्लेषण करने ,तार्किक ढंग से अपने विचारों को प्रस्तुत करने ,कार्य करने ,कार्य -कारण संबंध ढूंढने, चिंतन प्रक्रिया में पर शोधन करने ,लीक से हटकर चिंतन करने,पूर्वानुमान लगाने, आत्मावलोकन व आत्म परीक्षण से होता हैं । सोचने,विचारने ,चिंतन करने की प्रक्रिया में मौलिकता हो ।


बच्चे उन लोगो से नही सीखते जिनको वह पसंद नही करते । अतः हम सबसे पहले बच्चों के पसंदीदा बनें । जिससे बच्चों को सीखने में मजा,आनंद आए ।बच्चों के प्रयासों की प्रशंसा करें ।जिनके प्रयासों की जाती हैं वह अपने जीवन बेहतर कार्य करते है । हमें अपने व्यक्तित्व की अच्छाइयों- बुराईयों की स्वयं सूची बनानी चाहिए और जो चीजें ज्ञान और टैलेंट से जुडी हो उसे उभारना चाहिए । हर दिन हम कुछ नया सीखनें की कोशिश करें  । बच्चों के मन में एक सपना बुनना सिखाएं , इससे एक प्रेरणा प्राप्त होती हैं । जो भी बच्चे हमारे पास आते हैं वह विभिन्न कठिनाइयों व अभावों से ग्रसित होते हैं ,उन्हें जब हमारा स्नेह मिलता है तो उन्हें लगता है कि हमारा सुनहरा जीवन सही हाथों में है । हम बच्चों को आत्म अभिव्यक्ति से प्रेरित लेखन हेतु प्रोत्साहित करें । बच्चों के मुस्कुराते चेहरे हमारे चिंतन की सार्थकता हैं ,जो हमें राष्ट्र निर्माता जैसे पद से गौरवान्वित कर रही हैं ।

                                                      ✍️गोपाल कौशल


25 June 2020

मधुराष्टकम्



अधरं मधुरं वदनं मधुरं
नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥१॥

आपके होंठ मधुर हैं, आपका मुख मधुर है,
आपकी ऑंखें मधुर हैं, आपकी मुस्कान मधुर है,
आपका हृदय मधुर है, आपकी चाल मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥१॥



वचनं मधुरं चरितं मधुरं
वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥२॥

आपका बोलना मधुर है, आपके चरित्र मधुर हैं,
आपके वस्त्र मधुर हैं, आपका तिरछा खड़ा होना मधुर है,
आपका चलना मधुर है, आपका घूमना मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥२॥



वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः
पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥३॥

आपकी बांसुरी मधुर है, आपके लगाये हुए पुष्प मधुर हैं,
आपके हाथ मधुर हैं, आपके चरण मधुर हैं ,
आपका नृत्य मधुर है, आपकी मित्रता मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥३॥




गीतं मधुरं पीतं मधुरं
भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥४॥

आपके गीत मधुर हैं, आपका पीना मधुर है,
आपका खाना मधुर है, आपका सोना मधुर है,
आपका रूप मधुर है, आपका टीका मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥४॥



करणं मधुरं तरणं मधुरं
हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥५॥

आपके कार्य मधुर हैं, आपका तैरना मधुर है,
आपका चोरी करना मधुर है, आपका प्यार करना मधुर है,
आपके शब्द मधुर हैं, आपका शांत रहना मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥५॥




गुंजा मधुरा माला मधुरा
यमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥६॥

आपकी घुंघची मधुर है, आपकी माला मधुर है,
आपकी यमुना मधुर है, उसकी लहरें मधुर हैं,
उसका पानी मधुर है, उसके कमल मधुर हैं,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥६॥




गोपी मधुरा लीला मधुरा
युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥७॥

आपकी गोपियाँ मधुर हैं, आपकी लीला मधुर है,
आप उनके साथ मधुर हैं, आप उनके बिना मधुर हैं,
आपका देखना मधुर है, आपकी शिष्टता मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥७॥




गोपा मधुरा गावो मधुरा
यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं
मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥८॥

आपके गोप मधुर हैं, आपकी गायें मधुर हैं,
आपकी छड़ी मधुर है, आपकी सृष्टि मधुर है,
आपका विनाश करना मधुर है, आपका वर देना मधुर है,
मधुरता के ईश हे श्रीकृष्ण! आपका सब कुछ मधुर है ॥८॥


रुद्राष्टकम्




नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं॥1॥

स्वामी, ईश्वर, मोक्षस्वरुप, सर्वोपरि, सर्वव्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरुप श्रीशिव को नमस्कार है, आत्मस्वरुप में स्थित, गुणातीत, भेदरहित, इच्छारहित, चेतनरूपी आकाश के समान और आकाश में रहने वाले आपका मैं भजन करता हूँ।





निराकारमोंकारमूलं तुरीयं, गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणागार संसारपारं नतोऽहं॥2॥

निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय, वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, दयालु, गुणों के धाम, संसार से परे आपको सविनय नमस्कार है।





तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं।
स्फुरंमौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा॥3॥

हिमालय के समान गौरवर्ण, गंभीर, करोङों कामदेव के समान प्रकाशवान और सुन्दर शरीर वाले, जिनके सिर पर कलकल रूपी मधुर स्वर करने वाली सुन्दर गंगाजी शोभायमान हैं, जिनके मस्तक पर बालचन्द्र और गले में सर्प सुशोभित हैं।



चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुंडमालं, प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

चलायमान कुंडल धारण करने वाले, सुन्दर और विशाल त्रिनेत्र वाले, प्रसन्न मुख, नीले गले वाले, दयालु, सिंहचर्म को वस्त्र जैसे धारण करने वाले, मुंडमाला पहनने वाले, सबके प्रिय और सबके स्वामी श्रीशंकर जी को मैं भजता हूँ।



प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

प्रचंड, श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखंड, अजन्मे, करोङों सूर्य के समान प्रकाशवान, तीनों प्रकार के दुखों [दैहिक, दैविक, भौतिक] का नाश करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले, श्री पार्वती जी के पति और प्रेम से प्राप्त होने वाले श्री शिव को मैं भजता हूँ।





कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सज्जनानंददाता पुरारि।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारि॥6॥

कलाओं से परे, कल्याण स्वरुप, कल्प का प्रलय करने वाले, सत्पुरुषों को सदा हर्षित करने वाले, त्रिपुर के शत्रु, संघनित चेतन और आनंद स्वरुप, मोह को दूर करने वाले, कामदेव के शत्रु, हे प्रभु, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।





न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नराणां।
न तावत्सुखं शांति संतापनाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

जब तक श्री उमापति शिव के चरण कमलों को लोग नहीं भजते, तब तक उन्हें न इस संसार में और न परलोक में सुख- शांति प्राप्त होती है और न उनकी परेशानियों का नाश होता है। अतः सबके ह्रदय में निवास करने वाले हे प्रभु! प्रसन्न होइए।



न जानामि योगं जपं नैव पूजां, नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जरा जन्म दुखौघ तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो॥8॥

मैं न योग जानता हूँ, न ही जप और पूजा, हे शम्भु! मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमन करता हूँ। हे मेरे प्रभु!, हे मेरे ईश्वर!, हे शम्भु! वृद्धावस्था, जन्म आदि दुखों से घिरे मुझ दुखी की रक्षा कीजिए।