नमस्कार मित्रों आज हम आपको एक ऐसे शख्स से मिलाएंगे, जिनका पूरा परिवार पूरी जिंदगी कैंसर से लड़ता रहा है। आखिर इनके परिवार के साथ ऐसा क्या हुआ, जो हमेशा कैंसर से लड़ता रहा ? क्या कैंसर का इनके परिवार के साथ कोई रिश्ता था ? या फिर यह एक विंडबना थी ?
एक पंजाबी मिडिल क्लास परिवार जो देश की राजधानी दिल्ली में सन्- 1975 में आया। जब पूरे देश में आपातकाल जैसी स्थिति बनी हुई थी। हर कोई देश की चिंता में डूबा हुआ था। मगर धीरे-धीरे देश के हालात अच्छे हो रहे थे। हाँ सभी देशवासियों को संघर्ष करना पड़ रहा था। संघर्ष ही जिंदगी की सबसे बड़ी सफलता है। आज जिस पंजाबी परिवार की दास्तां हम आपको बताने जा रहे हैं, वह एक सरकारी अधिकारी की दास्तां है। यह दास्तां है, उस बाप की जिसने अपने आंखों के सामने अपनी धर्म पत्नी, बेटी और बेटे को कैंसर से लड़ते और जुझते देखा हो। जरा अंदाजा लगाइए उस व्यक्ति की आत्मा पर क्या बीत रही होगी ? कल्पना करना उतना ही कठिन है, जितना रेगिस्तान में पानी खोज निकाल कर पीना।
यह दास्तां मुझे उस बाप की उस बेटी ने साझा की है, जो खुद कैंसर से आज तक लड़ रही है। जिनका नाम कालज पल्ली है। काजल हमें बताती है, कि उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय विद्यालय से इंटरमीडिएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1995 में बी कॉम की पढ़ाई पूरी कर इंजीनियरिंग की। इस दौरान 2-3 महीने काजल ने शेयर मार्केट में नौकरी भी की। एक दिन कॉलेज में सीनियर छात्रों से मुलाकात के दौरान काजल गिर गई। काजल बताती है- अक्सर उसके पेट में दर्द रहता था और खाना नहीं खाया जाता था। यह बात काजल ने अपने परिवार वालों से छुपाई। इसलिए छुपाई कही परिवार वाले इस गलत ना समझ लें। घर वाले मुझसे क्या बोलेंगे ? आप जानते हैं, हमारे समाज में आज भी कई बच्चे अपनी बात अपने परिवार वालों को नहीं बता पाते हैं। जिसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। हमारे समाज को इन कारणों को दूर करने की जरूरत है। जिससे कई सारी चीजों पर रोक लगाई जा सकती है।
काजल बताती है- एक दिन मम्मी के साथ कहीं बाहर गई थी, तो मैं अचानक जमीन पर गिर गई और बेहोश हो गई। जिसके बाद मम्मी मुझे दिल्ली के सरोज नगर के एक अस्पताल में ले गई। जहां डॉक्टरों ने बिना टेस्ट किए ही मेरी मम्मी को अकेले में ले जाकर बता दिया, और जल्द से जल्द सर्जरी की बात बोल दी। अस्पताल जाते समय हम डीटीसी बस से गए, मगर घर आते समय मम्मी ने ऑटो कर लिया। मुझे कुछ-कुछ समझ में आने लगा, पर अभी तक मम्मी ने मुझे नहीं बताया था। घर पहुंचते ही सभी लोग आपस में एक-दूसरे को देखकर रोने लगें। जब मुझे पता चला, तो मैं तीन दिनों तक खमोश थी। मगर मैंने सोच लिया, अगर मरना ही है, तो कुछ करके ही मंरूगी। बहुत रोई…! बहुत रोई..! अपने आप को समझाने में लगी- आपने आप से बोलने लगी- लड़ना है, लड़ूगी मगर हार नहीं मानूंगी। जब मैंने काजल के मुंह से ये शब्द सुने तो मेरे हाथों से कलम अपने आप ही गिर गई और मैं स्तम्भ हो बैठा..!
आगे काजल बताती है कि 30 नवम्बर 1995 को उसकी पहली कैंसर सर्जरी हुई। काजल को पेट में कैंसर था, जो खतरनाक कैंसरों की श्रेणी में आता हैं। सन् 1995 में किसी परिवार के सदस्य को कैंसर होना और उससे लड़ाना वाकई में जिंदगी का सबसे खतरनाक मोड़ ही होगा। कैंसर जैसे बीमारी का इलाज कराना एक माध्यम वर्ग परिवार के लिए कितना मुश्किल होगा, यह आप सोच भी नहीं सकते है। 1995 में कैंसर का इलाज आज के मुकाबले बहुत ही महंगा और कठिन था।
जब आप किसी बीमारी से लड़ रहे हो, तो आपको क्या करना चाहिए ? काजल बताती है- लोगों से ज्यादा बात ना करें, ज्यादा सोचें नहीं, अपनी समस्या डॉक्टर को खुलकर बताएं, चिंता ना करें, परिवार का मनोबल बढ़ाएं, हंसी-मजाक करें आदि।
आगे काजल बताती है- मार्च 1996 में उन्होंने कैंसर की सर्जरी से उभरकर नौकरी शुरु की। धीरे-धीरे उनका जीवन सामान्य होने लगा। परिवार के हालात भी बेहतर होने लगें। परंतु इस दौरान काजल का छोटा भाई नशे व बुरी लतों की शिकार बन गया। जिसे आप पूरे परिवार का ध्यान काजल के कैंसर की ओर होना भी कह सकते है। परिवार की आर्थिक स्थिति के चलते पिता भी अब शराब पीने लग गए। हां…! धीरे-धीरे सब सामान्य हो रहा था। सन् 1997 पूरे परिवार के लिए सामान्य रहा। जब 1998 में मेरा दोबारा टेस्ट किया गया, तो पता चला मुझे एक और कैंसर हो गया है। यह सुनते ही मेरा पूरा परिवार उम्मीदों से टूट गया।
मेरी तबियत धीरे-धीरे खराब होने लगी। इतनी खराब हो गई कि सभी लोग मेरी मौत की प्रार्थना करने लगें। हे ईश्वर इसे मौत दे दें। मैं कई महीनों तक व्हीलचेयर में रही। इतना ही नहीं मेरे जीवन का बहुत लंबा समय कोमा में बीता। मगर मैंने कभी हार नहीं मानी और लड़ती रही। मेरे परिवार में हम 5 लोग थे- पापा, मम्मी, भाई, बहन और मैं। काजल कहती है- जीवन सर्फ ‘आज’ है। जो तुम्हारे पास आज है, वह कल नहीं होगा। इसलिए आज को सही और बेहतर तरीके से जिएं।
सन्-2000 में पूरा विश्व एक नई सदी में प्रवेश कर चुका था। समय धीरे-धीरे बदल रहा था। मेरी तबियत में भी कछुवें की गति से सुधार हो रहा था। तभी दुर्गा प्रसाद नाम के व्यक्ति ने मुझे से शादी करने का फैसला किया। मगर मेरे परिवार वालों ने उससे मना कर दिया और बोला आप पागल तो नहीं है। आप जानते हो क्या कर रहे हैं ? मगर उसने मेरे परिवार वालों से बोल मुझे इससे ही शादी करनी है। मेरे परिवार वालों ने दुर्गा प्रसाद जी को विचार विमर्श करने के लिए बोला था। दुर्गा प्रसाद जी ने अपना फैसला सुनाते हुए अक्टूबर-2000 में मेरे से शादी कर ली। मेरे पति ने जब मेरे से शादी की ना कोई देहज लिया ना ही कोई पैसा। दुर्गा प्रसाद जी ने एक ही बात बोली- यह लड़की मुझे कभी धोखा व छोड़कर नहीं जा सकती है।
आगे काजल बताती है- साल 2001 में मेरी माँ को कैंसर हो गया। जिसने मुझे कैंसर से लड़ते देखा। जो मजबूती से मेरे साथ खड़ी थी। अब वह खुद ही कैंसर की पीड़ित बन गई। मेरी माँ 2001 से मार्च 2004 तक कैंसर से लड़ती रही। जिसके बाद उसने दम तोड़ दिया। हमें पापा, भाई, बहन व मुझे छोड़कर चल गई। जो मेरे परिवार के लिए सबसे बड़ा झटका था। इस पीड़ा से मेरा परिवार भरा भी नहीं था, कि पता चला-2005 में मेरे भाई को भी कैंसर हो गया। हां मैं आपको बताना चाहती हूं, मुझे, मेरी माँ, मेरे भाई तीनों को अलग-अलग कैंसर था। यानि यह को पारिवारिक बीमारी भी नहीं थी।
हां..! मुझे याद हैं मेरी नानी, मामा, मौसा को भी कैंसर हुआ था। जब मेरे परिवार यानि मेरे पिता को पता चला कि भाई को कैंसर है, तो मेरे पापा पूरी तरह से टूट गए। 2005 में ही मेरे पापा सरकारी नौकरी से रिटायर हुए। जिससे परिवार की आर्थिक स्थित और बिगड़ गई। पापा ने भाई के लिए घर से लेकर सब कुछ बेच दिया। 2005 से लेकर 2013 तक मेरा भाई कैंसर से लड़ता-जूझता रहा। 2013 में भाई ने हार मान ली और हमें छोड़कर मम्मी के पास चला गया। जो माँ, भाई मेरे परिवार के साथ मेरी मौत की प्रार्थना करते थे, आज मैंने उनको मौत के मुंह में समाते देखा। जिस माँ ने मेरा हौसला बढ़ाया, जिस भाई ने मेरे लिए आंसू बहाएं, आज वहीं लोग मेरे साथ नहीं हैं। जिंदगी सिर्फ आज है, जिंदगी सिर्फ आज है। यहां कोई किसी के लिए जीता-मरता नहीं, बल्कि सिर्फ दुख को कम कर सकता है। मैं आप सभी से यहीं कहना चाहूंगी- आप सभी अपने पैरों पर खड़े हो, जिंदगी कब पासा पलट ले किसी को नहीं पता।
आपको बता दें- वर्तमान में काजल का 13 साल का एक बेटा है। जो सामान्य, हेल्दी और स्वस्थ है। काजल की छोटी बहन की भी शादी हो गई है। जिसका भी अपना परिवार है। हां वो बदकिस्मत बाप भी जिंदा है, जिसने अपनी पत्नी और बेटे को मौत के मुंह में जाते देखा है। इस पूरे साक्षात्कार के दौरान मैंने जिंदगी का एक नया अनुभव महसूस किया, जो शायद ही आपको कोई शिक्षा प्रदान कर सकती है।
हां..! इस साक्षात्कार के कुछ अंश मैं आप लोगों तक पहुंचे में कामयाब रहा। मैं अपनी कलम और काजल जी के हौसलें को सलाम करना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे बार-बार इस अंश को आप लोग तक पहुंचने में मदद की। अगर काजल जी का हौंसला मेरे कलम के साथ नहीं होती, तो शायद ही मेरा साहस इस अंश को लिख पाता।
संपादक- दीपक कोहली