“ न मां का स्थान चाहिए, न देवी की उपमा
नारी भी हैं इंसान, बस यही पहचान चाहिए ।
न कोई महबूब चाहिए,न कोई सौहरत
न ही कोई ताजमहल सा ईनाम चाहिए।
नारी कोई जाति ,धर्म नहीं, होली,
दिवाली का उपहार नहीं
उसे अब ऐसे पूरे समाज की सोच चाहिए ।
नारी कोई भोग,विलास की वस्तु नहीं
अब उसे लोगों की ऐसी नीयत चाहिए ।
नारी को करोड़ों की दौलत नहीं अब
बस लोगों की नजरों में थोड़ा-थोड़ा सा सम्मान चाहिए ।
डरी सहमी सी अपने ही घरों की चौखट न लगें उसे
ऐसी अब उसे थोड़ी सी जगह चाहिए ।
अपनों के बीच अल्हड़पन में बेखौफ जीये
ऐसा गंगाजल सा पावन ,उसे अब अपनापन चाहिए ।
दे सकें समाज और कानून ऐसा कोई आरक्षण तो दे दें
नहीं तो बेखौफ जीने की इस पुरी दुनिया
में कहीं कोई थोड़ी सी तो जगह दे दें ।।"
।। रेशमा त्रिपाठी ।।
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