साहित्य चक्र

08 June 2019

जिंदगी का इतना सार....


जिंदगी का इतना सा ही सार है
जिंदगी का इतना सा ही सार है

जिंदगी ख्वाबों का एक बाजार है
जिनके पूरे हो गए वो हैं धनी

जिनके टूटे वो हुए लाचार हैं
न ख्वाब, दौलत ना ही और कुछ

कीमती सबसे जहां में प्यार है
प्यार से ऐसे मुंह क्यों फेरता

प्यार से ऐसे मुंह क्यों फेरता
दौलतों से बढ़के जग में प्यार है 

है प्यार पर टिकी ये धरती की धुरी
प्यार से खुशहाल ये संसार है

दौलतें न हों तो कोई गम नहीं 
न प्यार हो तो जिंदगी बेकार है

दौलतें तो छीन लेती भावना
प्यार जज्बातों का पहरेदार है

नफरतों ने गर्क कर दी जिंदगी
नफरतों ने गर्क कर दी जिंदगी

प्यार ने हरदम किया उद्धार है
प्यार का ये फलसफा है यार सुन

प्यार ही हर रोग का उपचार है 
ईंट से बनते महल और कोठियां

प्यार से बनता सदा परिवार है
नफरतों में वास है पीडा़ओं का

प्यार में बसता सदा करतार है
किसी का कुछ भी हो पर है मेरा ये मानना

सबसे बढ़कर इस जहाँ में प्यार है

                                                    विक्रम कुमार



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