साहित्य चक्र

15 June 2019

‘बाल मन’



“बाल मन प्रकृति के समान पावन और पवित्र होता हैं  जो कि सामाजिक यथार्थ व वर्ग संघर्ष को नहीं समझता । और  वह व्यक्ति के जीवन की ठोस वास्तविकता का भी मर्म  नहीं समझता हैं । बाल मन  कोई मात्रात्मक तथ्य नहीं,शब्दार्थ नहीं अपितु मनोंभावों का आत्मिक साक्षात्कार होता हैं जिसे कलमकार अपने विचार द्वारा,चेतना द्वारा, उसके जीवन को पूरे आवेग से प्रकट करता हैं जो कि यही एक कलमकार की वास्तविक निधि हैं ।किन्तु जहां मनोंभावों की समस्त दृष्टि को वह लयबद्ध, छंदयुक्त जीवन की तलाश , लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्रतिष्ठित कर देता हैं वहीं बाल मन किसी अस्मिता का मोहताज नहीं होता किन्तु वर्तमान समय में इस विषय पर भी विचार –विमर्श करना नितान्त आवश्यक हैं क्योंकि वर्तमान में कलमकार की पेज पर पड़ी धूल के समान ही बाल मन सिमट कर रह गया है इसलिए बालमन को जीवनानुभूति का भास कराना, प्राकृतिक,सांस्कृतिक,साहित्यिक, निरीक्षण दृष्टि के मुक्त भावों सा खुलापन देना अनिवार्य  हैं जिसमें बच्चें अपनी सादगी,सहजता,रमणीय दृश्य की रोचकता का ,सांस्कृतिक ऐश्वर्य का,मानवीय अस्मिता का,प्रगतिशील जीवन दर्शन का रचनात्मक व कलात्मक ज्ञान प्राप्त करने के साथ जिज्ञासु,सजग व जागृति हो सकें ।



मानव जीवन के दुख– सुख की टीस ही मानवीय संवेदना को जन्म देती हैं जबकि यह बाल पन से ही व्यक्ति के भीतर विद्यमान होता हैं किन्तु। मानवतावादी दृष्टिकोण से जुड़ा हुआ मानव मन में कहीं न कहीं मानवीय संवेदना में  लोप हो जाता हैं और वह सामाजिक रूप में आवेग,करुणा, टीस के साथ अत्यंत प्रभावशाली,वर्चस्ववादी  रूप में उभर कर सामने आता है यहीं पर मानव मन यह भूल जाता हैं कि वह सर्वप्रथम एक बच्चा था कालांतर में वह मानव के रूप में परिभाषित किया जाता हैं ।  अतः बालमन को समझने के लिए मानव का मानवीय जीवन ईमानदार,संवेदनशील,पारिवारिक वातावरण से लिप्त ,सामाजिक जीवन जीने की भावना, गरिमा मयी मूल्यों की समझ ,न्यायप्रिय, ऊर्जावान होना जरूरी है  जो कि वर्तमान समय में व्यक्ति के भीतर मात्र बुझे हुए दीप की भांति विद्यमान हैं जिसे प्रजोल्लित करना नितान्त आवश्यक हैं जिससे बाल मन में संस्कृति, सभ्यता,शालीनता,आदर्श, करूणा,प्रेम,विवेक का सहजता से सृजन कर उन्हें एक संवेदनशील,कर्मठ,सकारात्मक दृष्टिकोण ,शोषणमुक्त मानवतावादी मानवीय चेतना का यथार्थ युग पुरुष/महिला बना सकें जिससे बालमन के साथ मानव बड़ा हो और अपने मानव रूपी जीवन को बाल मन जितना पावन व पवित्र रख सकें ।।”

                                                लेेखक- रश्मि त्रिपाठी





No comments:

Post a Comment