साहित्य चक्र

09 June 2019

*सिद्धी- एक उम्मीद*



सिद्धी बेटी दादी बन
हमको खूब समझाती हो,
चिडिया बन कलरव करके
आँगन को महकाती हो,

दूर देश से आई हो तुम
या हो तुम करीब से,
सिद्धी एक उम्मीद हो तुम
हमको मिली नसीब से,

माँ बनकर बच्चो की तरह
ख्याल हमारा रखती हो,
जब कभी गिर जाये तो
हाथ पकडकर चलती हो,
साथ-साथ तुम कदम बढाकर
इठलाकर के चलती हो,

दूर देश से आई हो
या हो तुम करीब से,
सिद्धी एक उम्मीद हो तुम
हमको मिली नसीब से...



पापा बनकर अपनेपन का
हमको विश्वास दिलाती हो,
गम लेके अपने हिस्से में
हमको खुशियाँ लाती हो,
जब कभी उलझन आ जाये
शिक्षक बन समझाती हो,

दूर देश से आई हो
या हो तुम करीब से,
सिद्धी एक उम्मीद हो तुम
हमको मिली नसीब से

बेटा बनकर तुम रखवाली 
करती हो परिवार की,
निडर संयमी होकर के
परवाह नहीं जीत-हार की,
घर का दीपक बन जाये
पराजय निश्चित है
मन के अंधकार की,

दूर देश से आई हो
या हो तुम करीब से,
सिद्धी- एक उम्मीद हो तुम.
हमको मिली नसीब से.


                                         ।।शशि कान्त पाराशर।।

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