साहित्य चक्र

05 June 2019

‘प्रकृति’



“हरियाली एक प्रकृति दृश्य हैैं
तन– मन से आह्लादित होते
जिससे हम सिंचित होते हैं।
उनकी शुद्ध हवाओं से ।।
उनको काटते हो क्यों तुम
यह धरा हमारा एक घर हैं
और पर्यावरण हमारी छत ।
जो सबको हैं छाया देते ।।

चिन्ता की बीमारी कम हैं होती
हरियाली देखें तो रोशनी बढ़ती
चलें हरी दूब पर नंगे पांव तो ।

और छाया,लकड़ी, फल तो इनका
मानव और प्रकृति के बीच
मानो हम सब कुछ भुलाए बैठें हैं ।।

मानव,पशु और जीव– जन्तु को
वह सन्तुलन बनाते हैं ।।
सबको वह तृप्ती देते हैं ।
इनके कट जाने से मानव
कितने निर्धन के घर में वह
वह जल कर भोजन पकाते हैं ।
हे! मानव क्यों तुम नित काट रहे हो।।

इतने उपयोगी वृक्षों को
तुम अंधे हो जाओगे ।
और अब बनों तुम इसके संरक्षक ।।"

धीरे –धीरे तेरा जीवन
अन्धकार में डूब रहा हैं अब ।।

प्रकृति बचाओ अब तुम मानव
यह पर्यावरण तुम्हारा हैं
वृक्ष लगाओ अब तुम मानव।
लेखिका –रेशमा त्रिपाठी


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