साहित्य चक्र

16 June 2019

नारी तुम, बन चंडी

*शंखनाद*
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नारी तुम,
बन चंडी,
उतर धरा पर..
करो स्वतन्त्रता 
का आगाज़ ...!
काटो बन्धन,
लिए हौंसलें...
भरो उड़ाने....
न रोक सके
कोई परवाज़...!!

कब तक ट्विंकल,
कब तक आसिफा,
कब तक बेटियाँ
मारी जायेंगी ..!

आने से भी डरें
धरा पर
सतत हैवानो के 
जो हाथ सताई 
जाएंगी
मत मारो कोख 
में अब बेटी
दरिंदों का संहार करो
नहीं सहे 
अत्याचार सुता तुम्हारी
अब ऐसा शंखनाद करो ।

शब्दो को 
श्रृंगारित कर 
घुँघरू सा नहीं 
बजाओ अब !!!
जागो कविते
अंगार बनो
संसद तक 
सन्देश पठाओ अब ।

                               रागिनी स्वर्णकत


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