गरीबी
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अवतरित हुआ अब तो,
भारत का पार्थ।
पृथक-पृथक मानसिकता,
को देकर मात।।
शपथ लेकर आया है,
सुशोभित अब सिंहासन।
तनिक भी क्लेश नहीं,
दूर होगा अब दुःशासन ।।
जागृत रही जनआकांक्षा तो,
होंगे कठिन कार्य पूर्ण।
जनमत की ताकत तो,
अधिकार देता सम्पूर्ण।।
राष्ट्र ध्वज तीन रंगो का,
तीन ही सबकी मांग।
रोटी कपड़ा और हो मकान,
सबसे पहला काम।।
देखता हूँ आज भी,
फूटपाथ पर सोते लोग।
ठंढ में आग और गर्मी में,
वृक्ष से पनाह लेते लोग।।
नजर पड़ती पैरो पर,
फटी एडियाँ कहती।
चेहरे की शिकन तो
मजबूरियाँ ही बयां करती।।
झुग्गियों से टप टप,
चुती हुई बरसात की बूँदे
जब तन को भींगोती हैं
वेवसी कितनी रोती है।।
तपती घूप में मजदूरों को,
तन भींग रहा देखो।
शाम को सेठ का उससे
मोल भाव करता देखो।।
दिल पसीज जाता है,
वेवसी का मंजर देखकर।
पर वे तो वादे कर जाते
इन्हें बदहाली देकर।।
आशुतोष
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