साहित्य चक्र

05 June 2019

#हमें_बदलना_होगा




गुलामी की बेड़िया 
जो हमने बांध रखी है 
उस विकृत मनः स्थिति 
को तोड़ना होगा 
उन्मुक्त सांचे में ढलना  होगा 
हमें बदलना होगा।

हम आज़ाद भारत 
के नागरिक है 
रुकावट वाले सरे 
बंदिशो को तोडना होगा 
हमें कुछ नया करना होगा
 हमें बदलना होगा। 

उँगलियों से अब 
काम चलने वाला नहीं 
मुट्ठी बनकर उभारना होगा 
असंभव को संभव कर 
एक नया द्वीप 
प्रज्वलित करनाहोगा 
हमें बदलना होगा। 

जो कहते रहे हम सिर्फ 
उन कथनों को हक़िक़त 
में करना होगा 
बेजान परम्पराओ को 
तोडना होगा नयी दिशा में उतरना  होगा 
हमें बदलना होगा। 

स्वर्णिम भारत की कल्पना 
को कल्पना में ही नहीं रखना होगा 
एक-एक को सचेत करना होगा
छोटा -बड़ा , जाति -पाती 
हिन्दू-मुस्लिम से ऊपर उठकर 
भारतवासी होना होगा 
हमें बदलना होगा। 

                               संतोष कुमार वर्मा "कविराज " 


No comments:

Post a Comment