साहित्य चक्र

20 June 2019

गिरीश कर्नाडः बहुमुखी व्यक्तित्व


ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता, बहुभाषी विद्वान, कुशल नाटककार,पटकथा लेखक,साहित्यकार अभिनेता, फिल्म-निर्देशक,और प्रभावी शिक्षक भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में विराट व्यक्तित्व की छवि रखने वाले गिरीश कर्नाड एक व्यक्ति नहीं वरन संस्था थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी गिरीश एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होने स्वयं को किसी एक कार्यक्षेत्र तक सीमित नहीं रखा वरन कई क्षेत्रों में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

19 मई सन 1938 को महाराष्ट्र माथेरान में जन्मे गिरीश कर्नाड का पूरा नाम गिरीश रघुनाथ कर्नाड था | उनके पिता का नाम रघुनाथ कर्नाड व माँ का नाम कृष्णबाई कर्नाड था | उन्होने 1958 में कर्नाटक वि.वि.से स्नातक किया तथा उसके बाद अपनी योग्यता के आधार पर ही उन्हें स्कॉलर के रूप में ऑक्सफोर्ड वि.वि. से आगे की पढ़ाई करने का अवसर मिला,ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के मेंगडेलन और लिंकॉन कालेज से उन्होंने एक नहीं बल्कि तीन विषयों दर्शनशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएशन किया अपने कैरियर के प्रारंभिक दिनों में वे “शिकागो विश्वविद्यालय के फुलब्राइट कॉलेज” में विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे लेकिन शीघ्र ही वे भारत वापस लौट आए और लेखन के साथ साथ थिएटर से जुड़ गए । बतौर अभिनेता उनकी पहेली फिल्म 1970 में बनी कन्नड़ फिल्म “संस्कार” थी जिसे राष्ट्रपति का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला.बॉलीवुड में बतौर अभिनेता उनकी पहली फिल्म 1976 में बनी “जादू का शंख” थी ।

हिन्दी, अँग्रेजी व कन्नड़ भाषा पर समान अधिकार रखने वाले कर्नाड ने कई सुप्रसिद्ध नाटक लिखें जिनमें “ययाति” और “तुगलक” जैसे नाटक बहुत ही लोकप्रिय हुए और आज भी कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल कर पढ़ाये जा रहे हैं |

विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए उन्हें मिले राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की एक लंबी श्रंखला है | सन 1978 में फिल्म “भूमिका” के लिए उन्हें नेशनल अवॉर्ड मिला साथ ही विभिन्न रूपों में उन्हें चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला | साहित्य के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए वर्ष 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान उन्हें प्रदान किया गया | साथ ही वर्ष 1974 में उन्हें पदम श्री तथा वर्ष 1992 में पद्म भूषण जैसे सम्मान भी मिले।

1976 में श्याम बेनेगल निर्मित फिल्म "मंथन" में  उन्होंने एक जुझारू व्यक्ति “डॉक्टर राव” का दमदार किरदार निभाया इस फिल्म में वह राजस्थान की एक गांव में बड़ी मशक्कत से वहां के लोगों को समझा-बुझाकर दूध की कोंपरेटिव सोसायटी का गठन करवाते है ताकि इस सोसायटी के माध्यम से ग्रामीण अपने दूध का व्यवसाय कर वास्तविक लाभ कमा सकें | इस फिल्म का चयन बताता है कि वह सिनेमा को महज मनोरंजन का साधन न मानकर सामाजिक जागरूकता का एक सशक्त माध्यम मानते थे ....।

फिल्मों के साथ साथ छोटे पर्दे पर भी उनकी प्रभावी भूमिका रही धारावाहिक “मालगुडी डेज” के स्वामी एंड फ्रेंड्स एपिसोड में उन्होंने बालक स्वामी की पिता का बेहद सशक्त किरदार निभाया व 1990 में विज्ञान पर आधारित धारावाहिक “टर्निंग पॉइंट” में उन्होंने होस्ट की सशक्त भूमिका निभाई .....।

गिरीश ने सलमान खान की फिल्म ‘एक था टाइगर' और ‘टाइगर जिंदा है' में भी काम किया था।टाइगर जिंदा है बॉलीवुड में उनकी आखिरी फिल्मथी। इसमें उन्होंने डॉ. शेनॉय का किरदार निभाया था। पिछले तीन सालों से बीमार चल रहे थे. उनके शरीर ने आक्सीजन बनाना बंद कर दिया था कृत्रित सांस नली से वह सांस लेते थे।इसलिए  नाक में नली लगाई थी. फिल्म के कई सीन्स में वह उसी नली के साथ ही नजर आए थे. खुद सलमान ने भी इस हालत में काम करने पर उनकी बहुत सराहना की थी।

जीवन के आखिरी वर्षों तक समाज और राजनीति को लेकर एक एक्टिविस्ट के तौर पर भी अपनी बेबाक राय रखते रहें।ग‍िरीश कर्नाड का निधन देश के लिए बड़ी क्षति है साहित्य और सिनेमा के एक युग का अंत हो गया. गिरीश कर्नाड एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं, जो सिनेमा और साहित्य दोनों क्षेत्रों में शीर्ष पर रहे और हर तरह की भूमिकाओं में काम किया. गिरीश कर्नाड का साहित्य और फिल्मों में योगदान लंबे समय तक याद रखा जाएगा।

                                                         डॉ.रचनासिंह "रश्मि"


No comments:

Post a Comment