विज्ञान का युग शिक्षा का युग है
मशीनों का युग प्रगति का युग है
इस बढ़ते हुए युग में भी मनुष्य गर्त में जा रहा है
समाज की कुरीतियों को गले लगा रहा है
इन घातक कुरुतियों ने क्या कुछ नहीं किया है
इन क्रूर रुढियो ने हमें बर्बाद कर दिया है
करते हैं फिजूलखर्ची अपने बच्चों के विवाह में
योग्य हैं वर वधू फिर क्यों खरीदते हैं उन्हें निगाहों में
कन्या और कलश ले लो हम पुरुषार्थ के धनी हैं
योग्य और पढ़े-लिखे वर वधू ही हमारी मनी है
पढ़े-लिखे नौजवानों को भी हम मां बाप को दुत्कारते देखते है
समय पर उनको भरपेट भोजन नहीं
वे उनको उठा उठाकर फेंकते हैं
क्या फिर मृत्युभोज उनके मरने पर काम आ सकेगा
क्या वह कर्मफल मृत्यु भोज उन बेटों को बचा सकेगा
पूरा परिवार शोक मग्न उनसे पांच पकवान कैसे खाया जाएगा
इसलिए बंद कर दो मृत्यु भोज
जीवित सेवा करो यही काम आएगा
कुछ रुपए बचाने के खातिर हम बाल विवाह कर देते हैं
जब बाल बड़े होते हैं कैची से कटते नजर आते हैं
छिन्न-भिन्न और तहस नहस संबंध विच्छेद हो जाते हैं
क्या करेंगे जब समधी जी जब वर वधु ही समझ नहीं पाते हैं
जो हमको मिटा रहे हैं उनको हम मिटा देंगे
छोड़ देंगे इन कुरितियों को हम सब को समझा देंगे
परमात्मा ने हमें बुद्धि दी है ज्ञान विवेक दिया है
फिर भी हमने इन कुरीतियों से मोह क्यों किया है
तोड़ देंगे इस मोह को अपने ही घर से शुरुआत करेंगे
हम समझेंगे तो सब समझेंगे अपने ही घर से शुरुआत करेंगे।
पंकज चन्देल 'प्रसून'
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