साहित्य चक्र

08 June 2019

आत्मनिर्भरता


जोधपुर इंदौर एक्सप्रेस से मैं कोटा जा रहा था। ट्रेन में एक नोजवान साधु वेश में भिक्षावृति कर रहा था। वह साई बाबा के नाम पर मांग रहा था। लोग रुपये पैसों का दान भोजन का दान कर रहे थे। वह सबको आशीर्वाद दे रहा था। मैं चुपचाप सब कुछ देखता रहा। वह मेरे पास आया बाबूजी साईं बाबा के नाम पर कुछ सेवा हो जाये। मैंने कहा तुम हट्टे कट्टे हो कुछ मेहनत किया करो। ये भिक्षावृत्ति तुम्हें नहीं करनी चाहिए। न तुम दिव्यांग ही हो। साधु बोला बाबूजी क्या करें पढ़ा लिखाकर मां बापू चल बसे। घर का खर्चा चलाना है बाबूजी। 



इसीलिए मांग लेता हूँ। मैंने कहा कितने पढ़े हो । वह बोला स्नातक कर रखा। कम्प्यूटर जानता हूँ। मैंने उसे अखबार में छपी वेकेंसी बताई। और समझाया। आप इस पते पर पहुंचो कम्प्यूटर चलाने वाले कि जरूरत है। उसके बात जम गई। वह ट्रेन के डिब्बे के बाथरूम में गया। साधुवेश उतारा। जीन्स पेंट शर्ट में वह नवयुवक बहुत सुन्दर लग रहा था।

एक पॉलीथिन में साधु वेश के वस्त्र रख कर बाहर आया। वह अब आत्मनिर्भर महसूस कर रहा था। अपने पैरों पर खड़े होने का जो राजमार्ग उसे दिख गया था।

                                                राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"



No comments:

Post a Comment