" मधुर मिलन की आस "
नीर भरे नयनों से मैं ,
प्रेमी प्रियतम को देखूँगी ।
अभिलाष कुंज की छाँव तले ,
पुलकित क्षण , अपलक दृष्टि से
अलौकिक छवि निहारूँगी ।
हृदय पटल पर शीश नवाकर ,
मन दर्पण की वाणी से
विरह वेदना कह दूँगी ।
प्रेम ऋतु का आलिंगन भर ,
उनके अधरों की तृष्णा को
प्रीत सुधा से पी लूँगी ।
चरण कमल की पूजन कर ,
पग चिन्हों की रोली से
सूनी माँग सँजो लूँगी ।
मधुर मिलन की बेला में ,
रति पुष्पों को अर्पित कर
लाज के घूँघट खोलूँगी ।
परिणय सूत्र के गठबंधन से ,
पावनता की ड़ोली में
आत्मिक समर्पण कर दूँगी ।
मैं प्रेमी- प्रियतम को देखूँगी
मैं प्रेमी -प्रियतम को देखूँगी ।
- आरीनिता पांचाल
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