डॉक्टर ने निशा से विस्तार से बातें
करीं और उसके बाद उन्होंने फोन करके किसी को जल्दी ही उनकी क्लीनिक पहुंचने के लिए
कहा। थोड़ी ही देर में दो लड़कियां उनकी क्लीनिक पर आ पहुंची। डाॅक्टर ने निशा से
उन दोनों का परिचय कराया एक थी आन्या और दूसरी थी मीमांसा ।डॉक्टर ने आन्या और
मीमांसा से अपने आपबीती सुनाने को कहा।आन्या बोली, निशा मुझे देख कर तुम डर तो नहीं गईं।बहुत से लोग तो आज भी
मुझे बड़ी हैरानी से देखते हैं ।एक सिरफिरे आशिक ने एकतरफा प्यार में पागल होकर
मेरा सारा शरीर तेज़ाब से जला दिया था।
सबसे ज्यादा प्रभावित मेरा चेहरा ही
हुआ था। मैं तो अपना हाल देखकर बिल्कुल टूट गई थी , असहनीय पीड़ा थी। मैं तो बिल्कुल भी जीना नहीं चाहती थी पर
तब डॉक्टर साहब ने ही मेरे मन में जोश भर दिया था और फिर मेरे मन में अपराधी को
सज़ा दिलाने कीललक जाग उठी ।मुझे उबरने में भी बहुत समय लगा पर मैंने अपनी दृढ
इच्छाशक्ति से विजय पायी।आज वह जेल में है और मैं अपना छोटा सा होटल चला रही हूं
।अब मेरे मन में बहुत तसल्ली है और मेरे होटल की खास बात यह है कि वहां पर सभी
वर्कर किसी ना किसी के सताए हुए हैं पर अब आत्मनिर्भर होकर अपनी जीविका चला रहे
हैं ।जब हमने कोई गलत काम किया ही नहीं तो हम उसकी सज़ा अपने आप को क्यों दें।
आन्या की बात खत्म होने के बाद
मीमांसा बोली मुझे तो मेरी ससुराल वालों ने बहुत सताया। हर वक्त कम दहेज का ताना
देकर मेरी पिटाई किया करते थे। मुझे भूखा भी रखते थे ।एक बार तो मुझे ज़हर भी दे
दिया पर मैं बच गई ।जब उनका मुझ पर किसी तरह ज़ोर नहीं चला तो एक दिन सबने पकड़ कर
मुझ पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी । मैं जब चीखी चिल्लाई तो पड़ोसियों ने किसी
तरह मेरी जान बचाई ।मैंने भी ठान लिया था कि अब अपने ससुरालियों को उनके किए की
सज़ा दिलाकर ही रहूंगी ।मुझ पर ससुरालियों ने बहुत दबाव डाला पर मैं उनके बहकावे
में नहीं आई। मुझे ठीक होने में बहुत समय लगा।आज भी उस समय को याद करती हूं तो
कांप जाती हूं।खाल तो बिल्कुल झुलस गयी थी।लेटना भी भारी था पर मन में जीने की ललक
और ससुरालियों को सज़ा दिलाने की तड़प ने मुझे टूटने नहीं दिया। बस अब वो तो जेल
में सड़ रहे हैं पर मैं आन्या दी के होटल में काम करके खुशी से अपना जीवन बिता रही
हूं।
डॉक्टर,आन्या एवं मीमांसा की
बात सुनकर निशा में भी जोश आ गया और बोली मैं क्यों शर्म से घर में दुबकी बैठी हूं
जबकि शर्मसार तो उसे होना चाहिए जिसने यह कुकर्म किया है। वह आगे बोली कसूरवार को
तो मैं भी सज़ा ज़रूर दिलवाकर रहूंगी। उसकी बात सुनकर उसके पेरेंट्स के चेहरे पर
चमक आ गई । सबका धन्यवाद अदा कर एवं डॉक्टर साहब से दवा लेकर निशा एवं उसके
पेरेंट्स घर आ गए ।घर आते ही निशा ने अपनी किताबों को संभाला अब वह अपनी पढ़ाई पर
ध्यान देकर अपना साल बचाना चाहती थी ।अब बलात्कारी के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने
की भी उसे बहुत जल्दी थी ताकि उसे सज़ा दिलाकर वो सुकून से जी सके और अपने लिए जो
सपने देखे थे उन्हें साकार कर सके। किसी ने ठीक ही कहा है मन के हारे हार है मन के
जीते जीत।
- वंदना भटनागर
No comments:
Post a Comment