प्रेम एक अनुभूति’
“ मन की व्याकुलता को
जो नहीं छिपा पाता है
वह हैं प्रेम ।
अपशब्द सुनकर भी
कदम ठहरे रहे वह हैं
आत्मिक प्रेम ।
वाणी की कटुता से
हृदय आह्लादित न हो
वह हैं प्रेम ।
सौम्य वाणी की एक ध्वनि मात्र से
बेतहाशा सुख की अनुभूति हो
वह हैं प्रेम।
वर्षों की प्रतीक्षा में
वियोगरत होकर भी
उम्मीद स्थिर हो
वह हैं प्रेम।
शब्द न हो मिलन पर
आंखे सजल हो
छू न सके कोई उस
आलौकिक मिलन को
वह हैं प्रेम ।”
रेशमा त्रिपाठी
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