आज सभी लोग धन कमाने के लिए दौड़-भाग कर रहे हैं या धन के पीछे पागल हुए जा रहे हैं। लोगों ने शिक्षा को भी धन कमाने का एक जरिया मान लिया है, जबकि शिक्षा, धन से कई गुना ताकतवर होती है। शिक्षा हमें वह सब कुछ दिला सकती है, जो हम धन से नहीं खरीद सकते हैं। उदाहरण के लिए हम भले ही कितने ही अमीर क्यों ना हो जाए, ज्ञान और आत्मविश्वास को हम बिना शिक्षा से प्राप्त नहीं कर सकते है। इसलिए हम सभी को अपने जीवन में धन के बजाय शिक्षा को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए।
मैंने महसूस किया है अधिकांश दलित, पिछड़े और गरीब लोग शिक्षा को वह महत्व नहीं देते, जितना धन को देते है। धन भले ही आप के परिवार को दो वक्त की रोटी और अच्छा घर दिला सकता है, मगर बिना शिक्षा के धन को बचा पाना मुश्किल है। मैं आपको अपने दोस्त सौरभ वर्मा के परिवार की कहानी बताता हूं। सौरभ के पापा और चाचा दो भाई थे और दोनों में खूब प्रेम था। दोनों का सोने-चांदी के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय था। एक दिन अचानक सौरभ के पापा की मृत्यु हो गई। दोनों परिवारों में टकराव आ गया और दोनों परिवार अलग-अलग हो गए। सौरभ के बड़े भाई ने अपना खुद का सोने-चांदी का काम शुरू कर लिया और दूसरे भाई ने टैक्सी लेकर टैक्सी चलाना शुरू कर दिया।
सौरभ के चाचा के तीन बेटे थे और तीनों ही ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। सौरभ के चाचा ने अपने एक बेटे को अपने साथ रखकर सोने-चांदी का काम सिखाया और दो बेटों को ट्रांसपोर्ट वाले व्यवसाय में लगा दिया। सौरभ के चाचा ने अपने बड़े बेटे की शादी की और शादी में खूब दहेज मिला यानी एक-दो गाड़ियां भी मिली। इसके बाद सौरभ के चाचा के बेटे ने अपनी खुद की सोने-चांदी की दुकान खोल ली।
इस दौरान सौरभ के चाचा के बेटे को किसी दूसरी लड़की से भी प्रेम हो जाता है और उसको बिना ब्याह घर ले आता है। शादी टूट जाती है और सौरभ के चाचा को बेटे की शादी में मिले दहेज को वापस करना पड़ता है। यूं कहे तो उनका यही से डाउनफॉल शुरू होता है। एक दिन अचानक सौरभ के चाचा के बड़े बेटे ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। लोग कहते हैं कि उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे जहर दे दिया था, मगर सच्चाई क्या है आज तक किसी को नहीं पता चल पाया।
सौरभ के चाचा का एक बेटा मर चुका था और ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े दो बेटे भी शराब के आदी हो चुके थे। आए दिन कुछ ना कुछ कांड करते रहते थे। कभी गाड़ी ठोक देना, कभी गाड़ी को खेतों में चढ़ा देना इत्यादि। व्यवसाय को सही से नहीं चला पाने के कारण ट्रांसपोर्ट के बिजनेस में सौरभ के चाचा को लगातार नुकसान होता जा रहा था। फिर क्या था एक बेटा पागल हो गया। कुछ दिन बाद सौरभ की चाची का देहांत भी हो गया। अब सौरभ के चाचा अकेले पड़ गए और घर की परिस्थितियों को देखकर उनका भी हौसला टूटने लगा। बिगड़ी हालातों को देखकर सौरभ के चाचा को अपने ट्रांसपोर्ट वाले व्यवसाय को धीरे-धीरे कम करना पड़ा।
स्थानीय लोगों को लगता था कि यह व्यक्ति पूरे क्षेत्र में सबसे अमीर है, मगर हकीक़त यह थी कि उसने लोन के सहारे ट्रांसपोर्ट का बिजनेस शुरू किया था। इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने सौरभ के चाचा की दुकान से जो गहने व जेवरात बनाए थे उनमें भी मिलावट की शिकायत आने लग गई। कहते है ना जो जितना अमीर होता है, वो उतना ही भ्रष्ट होता है। एक दिन अचानक सौरभ के चाचा का भी देहांत हो गया।
एक जमाना हुआ करता था सौरभ के चाचा पूरे क्षेत्र में सबसे अमीर माने जाते थे। जिनकी 8-10 बसें चलती थी और पूरे क्षेत्र में उनकी सोने की दुकान बहुत ही फेमस थी। मगर कहते हैं ना अगर आप ज्यादा कमाने के चक्कर में मिलावट करेंगे और गलत तरीके से कमाने की कोशिश करेंगे तो एक दिन आपका सब कुछ खत्म हो जाएगा।
इतना ही नहीं अगर सौरभ के चाचा अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करते तो शायद उनका ट्रांसपोर्ट वाला बिजनेस बच जाता और इसके अलावा उनके बच्चे कोई दूसरा काम या नौकरी भी कर सकते थे। ज्यादा कमाने की लत, मिलावट करने की आदत और शिक्षा से ज्यादा धन को तवज्जो देने के कारण आज सौरभ के चाचा का परिवार लगभग समाप्त है। वर्तमान में सौरभ के चाचा के परिवार में सिर्फ एक बेटा और एक बहु और दो बच्चे हैं। धन के साथ शिक्षा का भी उतना ही महत्व है, जितना हमारे लिए ऑक्सीजन के साथ पानी का होता है।
- दीपक कोहली



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