कलियुग में भी आना कान्हा
जब-जब धरती पर बढ़ा पाप और अत्याचार,
हर बार अवतरित हुए तुम करने दुष्ट का संहार,
घोर इस कलियुग में अब आ जाओ तारणहार,
ले लो जन्म कान्हा तुम करने दूर हर अनाचार।
दुधमुहीं बच्चियों से हो रहे हर दिन बलात्कार,
सुन्दरता जैसे अभिशाप हुई, हो रहे अम्ल प्रहार,
हर मोड़ पर मिलते यहाँ दुर्योधन और दुशासन,
चीरहरण रोकने बहनों का आ जाओ यशोदानंदन।
हर गली मोहल्ले, सड़क पर गउएं फिरती अथाह,
आ जाओ गोपाल दुर्दशा से बचाने, देने इन्हें पनाह,
उस शुद्ध दूध और मक्खन का करो तुम गुणगान,
नव पीढ़ी का बच्चा हो गया है जिससे अनजान।
हैं समाज में आज भी बैठे कंस जैसे क्रूर मामा,
आम जन की रक्षा करने, आ जाओ तुम श्यामा,
अघासुर, कालिया जैसे मानवरूपी हैं अजगर,
इनके विष से रक्षा करने निकल आओ गिरधर.
जब भी हुआ धर्म विनाश अधर्म हुआ उजागर,
तब –तब धर्म रक्षा हेतु जनम लिया दामोदर,
युद्ध -क्षेत्रे देकर अर्जुन को गीता उपदेश समझाया,
हर युग के मानव को तुमने कर्म का मर्म सुझाया।
घनघोर वृष्टि जब निरंतर द्वापर में कर रहे थे इंद्र,
कनिष्ठा से गोवर्धन उठा, घमंड चूर किया मुरलीधर,
आज भी आपदाएं आ रही, विपतियाँ हैं घनघोर,
वासुदेव नैया हमारी तुम बिन कौन लगाये उस छोर।
कलियुग में कई मुश्किलों से घिरा है भारत वैभव,
साख इसकी गिर ना पाए तुम डोर संभालो माधव,
खुशियों की बौछार कर दो, भर कर अपनी पिचकारी,
करते हैं करबद्ध प्रार्थना, कलियुग में आओ कृष्ण मुरारी।
- लता कुमारी धीमान
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कृष्णावतार
कारागार में जन्म लिया,
बेसुध हो गए सब पहरेदार।
पिता वसुदेव ने भर टोकरी में,
रातों रातों पहुंचाया यमुना पार।
उफने लगी यमुना बरसने लगी जल धार,
पदपंकज कान्हा के छू शांत हुई यमुना की धार।
गोकुल की गलियों को बालपन से सजाया,
माखन चुरा हर घर से पवित्र किए घरद्वार।
पूतना का दूध पीते पीते ही कर दिया कल्याण,
कालिया मर्दन कर, कई असुरों का किया संहार।
राधा संग प्रेममय होकर,
समझाया निस्वार्थ प्रेम का सार।
मधुर धुन बांसुरी की बजाकर,
तीनों लोकों का किया उद्धार।
चरण आंसुओं से धुला,सब सुख देकर,
जग में किया मित्र और मित्रता का सत्कार।
भरी सभा में भी द्रौपदी की रखी लाज,
जब दुष्ट करने लगे थे, नारी का शील तार तार।
कुरुक्षेत्र के मैदान में जब मोह से ग्रस्त हुआ पार्थ,
गीता ज्ञान देकर किया अपने सखा का उद्धार।
राधा छूटी गोकुल छूटा मथुरा छूटी,
द्वारिका बसा जा बसे कृष्ण मुरार।
जन्म लिया कारागार में, मात पिता से रहा दूर,
मामा भी बना शत्रु फिर भी समझा जीवन सार।
हालात कैसे भी बने भूले न कभी धर्माचार,
प्रेम निभा माखन चोर से बने कृष्णावतार।
- राज कुमार कौंडल
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हे केशव मैं कैसे भूलूं
हे केशव मैं कैसे भूलूं ,तुमने रीत निभाई थी,
जब जब भीड़ पड़ी भक्तों पर तुमने प्रीत निभाई थी।
प्रेम किया जब मीरा ने, भक्ति की रीत चलाई थी,
मीरा के विष को अमृत कर तुमने प्रीत निभाई थी।
भीड़ पड़ी जब कृष्णा पर, तब तुमने लाज बचाई थी,
चीर बढ़ा कर पांचाली का, तुमने प्रीत निभाई थी।
नानी बाई का भरा मायरा, नरसी की शान बढ़ाई थी।
करमा बाई का खाकर खिचड़ा, प्रेम की महिमा गाई थी।
हे केशव मैं कैसे भूलूं ,तुमने सदा ही प्रीत निभाई थी।
कच्चे चावल खाकर तुमने, सुदामा को तार दिया,
लेकर के हाथों में अपने, उत्तरा के पुत्र को जीवनदान दिया,
परीक्षित को जीवन देकर तुमने, पांडव वंश का उद्धार किया।
शाही भोज छोड़ कर तुमने, विदुर का भोजन स्वीकार किया।
स्वयं विधाता होकर तुमने,विधि के विधान को मान दिया,
हे केशव मैं कैसे भूलूं, बने सारथी पार्थ के तुम,
और गीता का ज्ञान दिया।
गीता के उस अमर ज्ञान से,
तुमने जग को हर समस्या का समाधान दिया।
जब जब तुमको याद किया, मैंने अपने संग पाया तुमको,
जब जब भीड़ पड़ी मुझपर, तुमने हर पल मेरा साथ दिया।
जिसने विश्वास किया केशव पर, है केशव उसके साथ खड़ा।
हे केशव मैं कैसे भूलूं, तुमने निज भक्तों का उद्धार किया।
- कंचन चौहान
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भाद्रपद मास रात आठवीं आधी,
रिमझिम फुहारें हवा थी गतिमान,
घनघोर घटाओं ने बाहें फैला दी,
जन्म लिया तब कृष्ण भगवान,
पिता बसुदेव देवकी माता बना दी,
सोलह कला का लेकर ज्ञान,
कंस बंश नाश की रचना रचा दी,
शिशु रूप में आये थे जो सब जाने जान,
बसुदेव लला नन्द घर रास रचा दी,
गोद यशोदा खेले देवकी की जाए जान,
विधाता तूने क्या ये लीला रचा दी,
कोख किसी की किसी और का दूधपान,
शिशु रूप में अपने जनम की वजह बता दी,
कंस सरीखे राक्षसों का मिटाया नामों निशान,
चोर बने , वन-वन ग्वाला बन गायें चरा दी,
गरीब ग्वालों संग खेले बन सखा समान,
आतताईयों को चुन-चुन कर सज़ा दी,
भारत धरा बनी पावन और महान,
आज भी कंसो ने यहाँ भीड़ बड़ी लगा दी,
आ जाओ मेरे प्रभु कर दो इनका काम तमाम,
गली-गली है भक्तजनों ने अपनी बाहें फैला दी,
घर –घर आज बना है मथुरा और गोकुल धाम,
‘धरम “दुखी मन की व्यथा तुम्हें सुना दी,
आगे तुम जानो अपना विधि और विधान।
- धरम चंद धीमान
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मेरे माधव
माधव तेरे शहर के लोग
अक्सर मोहब्बत का
नाम लेकर डसते हैं।
माधव तेरे शहर के लोग
नाम तो तेरा लेते है
पर तुम जैसी
प्रेम प्रीति न करते हैं।
माधव तेरे शहर के लोग
कान्हा-कान्हा तो करते हैं
मगर तुम जैसा
रण में साथ न देते हैं।
माधव तेरे शहर के लोग
प्रेम तो बहुत करते हैं
मगर तुम जैसे
निभाने से डरते हैं।
माधव तेरे शहर के लोग
सत्यता का गुणगान तो करते है
मगर तुम जैसे
सत्य के लिए लड़ने से डरते हैं।
- डॉ. राजीव डोगरा
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