आदरणीया बड़ी बहन जी को स्नेहवन्दन,
बहुत दिन हुए आपसे मिले हुए, लेकिन आपके द्वारा नियमित फोन करना मेरे प्रति आपकी फिक्र को दर्शाता है। आपने हमेशा से ही मुझे लाड़-दुलार किया है। उम्मीद है कि आपका स्नेह जीवनभर यूँ ही मिलता रहेगा।
जल्द ही हम दोनों का पसंदीदा त्योहार रक्षाबंधन आ रहा है, जिसके लिए मेरे मन में अभी से बहुत उत्साह है। आप जब भी मेरी कलाई पर प्रेम से राखी बाँधती हैं तो उसमें आपकी ममता और समर्पण नज़र आता है। सच बताऊं तो मुझे बेहद ख़ुशी की अनुभूति प्राप्त होती है। एक दूसरे से दूर होते हुए भी यह पावन पर्व हमें रिश्ते की मजबूत डोर से बाँधे रखता है।
प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी मैं इस महान पर्व पर आपके आशीष का आकांक्षी रहूँगा। मैं भी सदैव आपकी रक्षा करने का प्रण लेता हूँ और आपके उत्तम स्वास्थ्य व अनगिनत ख़ुशियों की कामना करता हूँ।
आपका दर्शनाभिलाषी
आपका छोटा व लाडला भाई
- आनन्द कुमार
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मेरी प्रेरणास्त्रोत व प्यारी बहना,
आपको कोटि -कोटि नमन
इस वर्ष का रक्षाबंधन आ गया है और आज मुझे लगभग पैंतीस-चालीस वर्ष पहले की रक्षाबंधन की बात याद आ गई। सोचा आपको पत्र के माध्यम से याद करवाऊं तो ज्यादा आनंद की अनुभूति होगी। मैं दूसरी कक्षा का विद्यार्थी था, उम्र सात साल के आसपास थी। बरसात का मौसम और रक्षाबंधन पर्व का दिन था। आपके स्कूल में छुट्टियाँ होने के कारण आप मामा के घर चली गई थी। आपने मुझे राखी पहनाने को उस दिन घर आना था, लेकिन भारी बारिश के कारण आप आ नहीं पा रही थी।
खड्ड के ऊपर उस समय कोई पुल नहीं था, हालाँकि दो बहनें और भी थी लेकिन आप हम सबसे बड़ी थी तो आप सबकी प्यारी और सम्मानित थी। इसलिए सभी के लाख समझाने पर भी मैं नहीं माना था, कि दूसरी बहनों से ही राखी पहन लो। मैं इस बात पर अड़ा रहा कि छोटी बहनों से भी राखी तभी पहनूंगा जब बड़ी बहन पहले पहनाएंगी। शाम हो गई थी लेकिन मेरी कलाई पर राखी नहीं थी। किसी तरह पिता जी तीस पैंतीस किलोमीटर सड़क मार्ग से पता नहीं कैसे-कैसे मामा के घर पहुंचे थे। आपको लेकर रात को आये थे, तब जाकर मैंने तीनों बहनों से राखी बंधवाई थी।
समय कितनी तेज गति से गुजर गया लेकिन वो याद आज भी ताज़ा है। भगवान आपको खुश रखे। अब की राखी पर भी आपका इंतज़ार रहेगा।
सप्रेम,
आपका अनुज
धरम चंद धीमान
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