आपने देखा होगा किसी मजबूत पेड़ के आसपास कुछ अस्तित्वहीन,असमर्थ, कमजोर मानों खरपतवार जैसी बेले पनपती है जो धीरे-धीरे अपने पांव पसारते हुए पेड़ की तरफ बढ़ती है ताकि पेड़ का सहारा पाकर खड़ा हुआ जा सके। ये बेले इतनी कमजोर होती है कि अपने बलबूते पर खड़ी भी नहीं हो सकती, पेड़ भी बड़प्पन दिखाते हुए कमजोर, निर्बल, समझकर बेलों को सहारा देने के लिए राजी हो जाता है।
पेड़ अपनी शाखाओं को जमीन पर झुकाकर उन असहाय बेलों की मदद करता है, जैसे ही बेले पेड़ को स्पर्श करती है तुरंत दोगुनी रफ़्तार के साथ बढ़ने लगती है। देखते ही देखते पेड़ की चोटी तक पहुंच जाती है। पेड़ गौरवान्वित महसूस करता हैं और अपनी महानता पर खुशी से झूम उठता है कि उसने किसी निर्बल को सहारा देकर बहुत बड़ा पुण्य का काम किया है। लेकिन असली खेल तो इसके बाद शुरू होगा पेड़ की खुशी के ये आखिरी दिन है क्योंकि बेलों ने पेड़ को चारों तरह से जकड़ लिया है और अपनी जबरदस्त पैंठ बना ली है।
बेलों ने पेड़ को इस कदर घेर लिया है कि उसका अस्तित्व ही मिटा दिया। यहां तक कि पेड़ को मिलने वाली सारी प्राकृतिक सुविधाएं भी खा गयी, पेड़ का पोषण खाकर भी इन खरपतवार जैसी बेलो का मन नहीं भरता उसके बाद पेड़ पर हावी होकर उसका विकास रोक लिया और बड़े गरूर से दावा करने लगी कि हमने पेड़ को सरंक्षण दिया हुआ है हमारी वजह से पेड़ हर मुसीबत से बचा हुआ है।
इसी तरह मनुष्य के जीवन में भी कई बेलों सरीखे लोग होते हैं जो शुरुआत में मायूस,असहाय, मजबूर, दुःखी दिखते हैं धिरे धिरे अपनी जगह मजबूत करने लगते हैं और मौका पाकर अपना असली रंग दिखाना शुरू करते हैं।
ऐसे लोगों से जितना हो सके खुद को दूर ही रखना, ये लोग आपकी अच्छाई का ग़लत फायदा उठाते हैं, पहले आपका हक खाएंगे बाद में आपको ही खा जाएंगे और दुनिया के सामने ये प्रर्दशित करेंगे जैसे आप उनका इस्तेमाल कर रहे हैं वो नहीं, वो तो मासूम है।
अच्छा नागरिक बनकर लोगो की मदद जरूर करिए लेकिन उतना ही जितने में आपकी अपने आत्मविकास को कोई बाधा न पहुंचे।
- बिशना गाजटा, शिमला, हिप्र

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