साहित्य चक्र

14 August 2025

महान स्वतंत्रता सेनानीः बोस और भगत

                                       
लोग कहते हैं बदलता है जमाना, 
पर मर्द वे हैं जो जमाने को बदल देते हैं।

सुभाष चंद्र बोस एक महान स्वतन्त्रता सेनानी, एक प्रभावशाली नेता, प्रतिभाशाली व्यक्तित्व और एक महान विचारक थे। इनका जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओड़िशा के कटक में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकी नाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में हुई। इनकी प्रारम्भिक कॉलेज की शिक्षा कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई। पढ़ाई में वे इतने मेधावी थे कि भारतीय सिविल परीक्षा में इन्होंने चतुर्थ स्थान प्राप्त किया था। इनका विवाह एमिली शेंकल नाम की एक आस्ट्रियन महिला से 1942 में हुआ था, इनकी एक बेटी अनीता बोस फाफ थी जिसका जन्म भी 1942 में हुआ था। घर का वातावरण ऐसा था कि सुभाष चंद्र बोस प्रारम्भ से ही राष्ट्रीयता और देश प्रेम से ओत -प्रोत होकर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े।






       सुभाष चंद्र बोस ने 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान कांग्रेस की सदस्यता ली और शीघ्र ही एक प्रभावशाली उग्र नेता के रूप में उभरे। वे उग्र राष्ट्रवाद के द्वारा अंग्रेजो को भारत से समूल उखाड़ फेंकने के पक्षधर थे। 1938 में वे कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष निर्वाचित हुए परन्तु महात्मा गाँधी जी के साथ विचारों के वैमनस्य के कारण, उन्होंने कांग्रेस छोड़ 1939 में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। 1921 से 1941 तक विभिन्न  स्वंत्रता आंदोलनों के दौरान कई बार इन्होंने जेल की यातना सही। 

1941 में वे नजरबंद थे, परन्तु अपनी चतुराई से वे शत्रु की आँखों में धूल झोंक कर अफगानिस्तान, सोवियत रूस से होते हुए जर्मनी जा पहुंचे। वहाँ वे एडोल्फ हिटलर से मिले एवं उनसे भारत की स्वतन्त्रता के लिए समर्थन प्राप्त किया| हिटलर के परामर्श पर ही वे जलमार्ग से पंडुब्बी द्वारा अमरीका और ब्रिटेन की गशत वाले खतरनाक और जोखिमपूर्ण मार्ग से होते हुए जापान पहुँचे।

जापान में प्रधानमंत्री हिदेकी तोजो के सहयोग से नेता जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई का एक अलग अध्याय जोड़ा, वहाँ उन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध आज़ादी की लड़ाई के लिए जापान का समर्थन प्राप्त कर महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। अब उन्होंने 1943 में सिंगापुर में आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना की। भारतीय सैनिकों को उन्होंने ने "दिल्ली चलो' और 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा' जैसे क्रन्तिकारी और जोशीले नारे दिए। परिणामस्वरूप आज़ाद हिन्द फौज ने कम संख्या के बावजूद अंडेमान निकोबार पर कब्जा कर लिया, एवं आज़ाद हिन्द फौज मणिपुर, इम्फाल आदि में दाखिल हो गई परन्तु पूर्वी क्षेत्रों में कम संख्या के कारण आगे ना बढ़ सकी।

        अंत में 18 अगस्त, 1945 को ताइवान में एक विमान दुर्घटना में नेता जी की मातृभूमि के लिए शहीद हो गए, परन्तु आज भी नेता जी की शहादत एक अनसुलझी पहेली की तरह है। इतने वर्ष बीतने पर भी नेता जी की मृत्यु पर संशय बरकरार है। परन्तु जो भी हो नेता जी जैसे व्यक्तित्व सदियों में अवतरित होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व सदा सर्वदा के लिए अमर हो जाते हैं एवं सदैव सम्मानित होते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है- शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।


                                                                                - प्रवीण कुमार


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"भगत सिंह –एक वीर बलिदानी स्वतंत्रता सेनानी"




हंसते-हंसते मातृभूमि की आज़ादी के खातिर दे दी थी अपनी जान,
शादी की उम्र में चूम फांसी का फंदा बेख़ौफ़ हो गये थे वो कुर्बान,
धन्य है वो कोख जिसने पैदा किया था ऐसा वीर सपूत महान,
चुकाई थी आज़ादी की कीमत जिसने करके अपने प्राण बलिदान।


   भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने खुद को बलिदान करके आज़ादी की कीमत चुकाई थी, उनमें सबसे साहसी ,बहादुर, क्रन्तिकारी विचारों वाले और सर्वोच्च बलिदानी के रूप में भगत सिंह जी को याद किया जाता है। भगत सिंह जी का जन्म एक सिख परिवार में पिता किशन सिंह संधू और माता विद्यावती कौर के घर हुआ था। छोटी सी उम्र से ही वे देशभक्ति और स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों से प्रभावित थे।



फोटो स्रोतः गूगल



        उन्होंने शुरुआत में लाहौर के दयानंद एंग्लो-वादिक स्कूल से पढ़ाई की। जलियांवाला बाग हत्याकांड जो सन 1919 में हुआ, उससे वे इतने दुखी हुए कि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने का संकल्प कर लिया। उन्होंने “नौजवान भारत सभा” बनाई। इनके नेतृत्व में इनके साथियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया। वे 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन' के सदस्य बने। चन्द्रशेखर आज़ाद ,लाला लाजपत राय और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के विचारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। 

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए 1928 में उन्होंने अपने साथियों संग एक व्रिटिश पुलिस अधिकारी जे.पी. सांडर्स की हत्या की योजना बनाई। ब्रिटिश सरकार के प्रति युवाओं के गुस्से को दिखाने के लिए दिल्ली  में केन्द्रीय विधान सभा में बम फेंके, हालंकि इनका उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था। इनके पिता और चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह भी प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे।


       उनके इन वीरतापूर्ण कार्यों के बावजूद ,भगत सिंह ,राजगुरु और सुख देव को जे.पी . सांडर्स की हत्या के लिए मौत की सज़ा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को 23 बर्ष की छोटी उम्र में फांसी दे दी गई थी। संभावित विरोध से डरी हुई अंग्रेजी सरकार ने तय समय से 11 घंटे पहले ही उन्हें फांसी दे दी थी, भगत सिंह जी की बहादुरी, बलिदान और स्वतन्त्र भारत के लिए उनके सपने ने देश पर हमेशा के लिए प्रभाव छोड़ा है। 

उनकी विरासत उन लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए लड़ाई जारी रखे हुए हैं। इनके द्वारा दिया गया 'इंकलाव जिंदाबाद' का नारा आज भी बहुत प्रसिद्ध है। आज आज़ादी की बर्षगांठ के इस सुअवसर पर सम्पूर्ण कृतज्ञ राष्ट्र उन शहीदों को याद करते हुए नमन कर रहा है और सदा सर्वदा हर भारत वासी उनका ऋणी रहेगा। मां भारती  के आँचल में अगर भगत सिंह जैसे बलिदानी सपूत पैदा होते रहेंगे तो इसकी ओर किसी की भी आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं होगी।


                                                               - धरम चंद धीमान



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