साहित्य चक्र

26 August 2025

पहली पिकनिक की यादें...


दो-चार दिन पहले दोस्त मनोज का फोन आया और स्कूल की सारी पुरानी यादें ताजा हो गई। यूंही बातों-बातों में उसने पहली बार की पिकनिक याद दिला दी। मनोज, गौरव और मैंने पैसा जमा किए और खाने-पीने का सामान खरीद कर चल दिए ऊंची पहाड़ी पर स्थित नाना बाबा के मंदिर में पिकनिक मनाने। मंदिर को पिकनिक के लिए इस लिए चुना था क्योंकि मंदिर जाने के लिए घर वाले मना नहीं करते थे।






करीब एक-डेढ़ घंटे की चढ़ाई चढ़ने के बाद शाम के समय हम तीनों दोस्त मंदिर पहुंच गए। हम तीनों दोस्तों की जाति अलग-अलग थी। मंदिर में भक्तों की रुकने की व्यवस्था तो थी, मगर समस्या यह थी कि मंदिर वालों को जाति बतानी होती थी। हम तीनों में एक दलित था। जाति का नाम सुनते ही उस बेचारे के चेहरे का रंग उड़ जाता था।



मंदिर में पुजारी और उसका चेला सहित दो ही लोग थे तो इसलिए उनको मूर्ख बनाना हमारे लिए बहुत आसान था। पुजारी ने कमरा और खाना बनाने के लिए बर्तन तो दे दिए। मगर अब समस्या थी खाना बनेगा कैसे? खाना बनाने की जिम्मेदारी मैंने ली। करीब रात 10:00 बजे के आसपास खाना बनाकर तैयार हो गया। इतने में बहुत तेज बारिश हो गई और कुछ लोग अचानक मंदिर परिसर में आ गए। लौकी की सब्जी, पूड़ी बनकर तैयार थी। मुझे सही से याद नहीं है वो शायद तीन या चार लोग थे और उनके साथ एक छोटा बच्चा भी था। पुजारी जी हमारे पास आए और बोले कि इन लोगों को भी प्रसाद ग्रहण करवाओ यानी खाना खिलाओ। गौरव उठकर गया और रसोई से चार-पांच थाली लेकर आया; हमने सभी को पूड़ी व सब्जी दे दी।






दो-ढाई घंटे की चढ़ाई चढ़ने के बाद हम तीनों को भी भूख लगी थी। हां इस दौरान कोल्ड ड्रिंक, नमकीन व बिस्किट हमने जरूर खाए थे। मगर कहते हैं ना पेट तो अन्न से ही भरता है। उन चार लोगों के आने से हमारा भोजन कम पड़ गया। वो लोग नहीं आते तो शायद हम तीनों सही से भोजन करते, मगर पुजारी जी की बात भी हम नहीं टाल सकते थे।

बाकी बचा भोजन हम तीनों ने खा लिया, मगर गौरव ने बोला कि उसको और भूख लगी है। हमने प्लान किया था कि सुबह हलवा बनाएंगे और हलवे का नाश्ता कर वापस जाएंगे। मगर गौरव की भूख को देखा हमने प्लान बदल दिया और हलवा रात में ही बनाने का निर्णय लिया। कुछ देर बाद बारिश भी कम हो गई थी और इतने में वो लोग भी चले गए थे। फिर क्या गौरव रसोई से कढ़ाई लेकर आया और मैं चीनी, घी और सूजी निकाल कर हलवा बनाने में लग गया। करीब 20-25 मिनट में हलवा तैयार हो गया। हलवा बन तो गया, मगर हलवे में चीनी ज्यादा डल गई। जोरदार भूख के कारण हलवा मिनटों में समाप्त हो गया। मीठा ज्यादा होने से तीनों दोस्त रातभर पानी पीते रहे और सही से सो नहीं पाए।

सुबह होते ही हम तीनों दोस्त फ्रेश होने के लिए मंदिर से दूर दूसरी की तरफ चले गए। मंदिर में शौचालय की व्यवस्था तो थी, मगर पुजारी जी ने लॉक लगाया हुआ था। फ्रेश होने के बाद हम तीनों में स्नान किया और मंदिर में पूजा की। अब हमें चढ़ाई से नीचे उतरना था। चढ़ाई चढ़ता जितना कठिन होता है, उससे भी कठिन नीचे उतरना होता है। यह हम तीनों दोस्तों की पहली और आखिरी पिकनिक थी। इसके बाद कभी पिकनिक या तीनों को एक साथ कहीं जाने का मौका नहीं मिल पाया। आज तीनों दोस्त अलग-अलग शहरों में जीवन के संघर्षों के साथ पिकनिक मना रहे हैं।


- दीपक कोहली



No comments:

Post a Comment