साहित्य चक्र

08 August 2025

रक्षाबंधन: बचपन की रेशमी यादें

रक्षाबंधन का नाम लेते ही बचपन की वो सुनहरी तस्वीरें आँखों में तैरने लगती हैं। मैं घर की सबसे छोटी थी– दो बड़ी बहनों में। भाईयो के नाम पर चाचा,ताऊ के बेटे थे, जो दूर रहते थे। त्योहार आते ही मन में उत्साह की लहर दौड़ जाती।



प्रतिकात्मक छायाचित्र




राखी से पहले ही भाईयों के लिए सुंदर सी राखी अपने छोटे - छोटे हाथों से बनाती और टीके के समान के साथ चिट्ठी भेजती, और दूर  रहने वाले भाई हर साल समय पर मनीऑर्डर भेज देते। उस समय के 50 रुपए भी ख़ुशियों का सागर लगते थे। जो भाईयों ने भी अपने पिताजी से लेकर दिए होते थे।

हम बहनें उन पैसों से चूड़ियाँ, रिबन और मिठाइयाँ खरीदकर भाई की लंबी उम्र की कामना करती थीं। आज सब अपने परिवारों में व्यस्त हैं, फिर भी राखी आते ही दिल वही बचपन ढूंढ़ता है। अब भी सभी मुझे बच्चों की तरह दुलारते हैं, कुछ न कुछ देती हैं।

राखी सिर्फ़ एक धागा नहीं, बल्कि उस रिश्ते का प्रतीक है, जो जीवन भर बिना शर्त प्रेम से बंधा रहता है।


                                      -  डॉ. सारिका ठाकुर 'जागृति' 





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