साहित्य चक्र

04 August 2025

4 अगस्त 2025- आज की नौ कविताएँ





निश्छल प्रेम जहां है मिलता 
वहीं मित्रता रूपी फूल है खिलता।
हरदम अपनत्व जताता
मुसीबत में सबसे पहले याद आता।
कभी भी आंखें मैली नहीं करता
याद आए हाजरी भी जरूर भरता।
दिल से ये रिश्ता है बनता 
कभी भी दिमाग दरम्यान नहीं आता।
जब भी मित्रता को देखता 
कृष्ण सुदामा  की याद जरूर दिलाता।
पद ,प्रतिष्ठा सब भूल जाता 
मित्र जब भी नजर है आता।
जब मित्र कोई  है बनता 
जात, धर्म,उंच नीच नहीं देखता।
मित्रता है एक ऐसा उपहार 
नहीं पहुंचता हर किसी के द्वार।


                                                                   - विनोद वर्मा


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सच्चा मित्र मिलता नहीं,
कोई ढूंढे ले मशाल,
बात जो दिल की समझ ले,
देख तुम्हारा हाल,
सुख में चाहे साथ न हो,
विपत्ति में रखे ख्याल,
जात-पात कुल श्रेष्ठता की,
करे नहीं जो बात,
कद्र करे जो भावों की,
और समझे जज्बात,
दौड़ पड़े जो खातिर तुम्हारे,
बिन देखे दिन या रात,
भेद न तुमसे रखे जो,
न दिल में छुपी कोई बात,
हिम्मत दे जो तुमको,
रख हाथ में हाथ,
कोई साथ दे न चाहे,
छूटे न उसका साथ,
ऐसा मित्र जो तुम्हे मिले,
फिर स्वर्ग में है आप।


- धरम चंद धीमान


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फिर कभी न आये ऐसी बरसात

उम्र के उस पड़ाव पर छूट गया अपनों का साथ
जब जरूरत थी बढ़ापे में दोगे सहारा थाम लोगे हाथ
क्या कसूर था माली का जिसने खून पसीने से सींचा था
कैसे जियेगा माली जब खाली हो गए दोनों हाथ

सो रहे थे सब रात को मीठी नींद थी पड़ी
आफत ने आ घेरा मुश्किल की थी घड़ी
ऐसा बरसा मेघ की सब उजड़ गया
किसी को नज़र नहीं आई मौत कहाँ थी खड़ी

किसको पुकारें किसको आवाज़ दे
कोई नहीं सुन रहा मेरी पुकार
मुझे भी ले जाते साथ क्यों रह गयी अकेली
कैसे जियूंगी तुम बिन कभी खत्म न होगा अब ईंतज़ार

विधाता का लिखा कोई मिटा नहीं सकता
जितना लिखा है उससे ज़्यादा कोई रिश्ता निभा नहीं सकता
लाख आवाजें लगा ले कोई जितना मर्जी चिल्ला ले
एक बार जो चला गया वह वापिस आ नहीं सकता

कैसे रहूंगी घर में अकेली किससे करूंगी अब बात
किसको ज़ख्म दिखाऊँ किसको सुनाऊं दिल के जज़्बात
जीना तो पड़ेगा कोई किसी के साथ नहीं जाता
दिल को दिए जख्म जिसने फिर कभी न आये ऐसी बरसात


                                                  - रवींद्र कुमार शर्मा


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जुदाई है, क्या यही महोब्बत का सिला है

दर्द दरिया और दरख़्त, तुम, मैं ,अब नहीं,
पता नहीं,  प्रेम,जुदाई का सिला अब यही।
तन्हाइयां हैं बस और है दिल का फ़साना।
वो पेड़ की छांव, वो पानी से अटखेलियां,
तेरी यादे आती हैं, और वो पेड़ की डालियां,
तेरा उछलना ,कूदना, झूलना याद आता है।
जुदाई है, क्या यही महोब्बत का सिला है,
मुकद्दर, हां तेरी भी कुछ मजबूरियां तेरी।
कुछ तो बता क्या इंतजार बेकार हैं,
बस तन्हाइयां है,और रहेंगी यादें तेरी।
दिल की आवाज भी नहीं आती कई बार,
टूटता है तुझे ढूंढता है, हर शए में तेरा प्यार।
अफसोस तू नहीं, यह जुदाई का दर्द है,
मेरा दिल टूटता है, तेरी याद में बार-बार।
तेरी अनुपस्थिति में जीवन अधूरा है,
तेरी यादें ही मेरे जीवन का सहारा है।


                                              - डॉ. मुश्ताक अहमद शाह


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काश
उम्र की इस साँझ में,
जब तुम स्वयं से मिले
पूछो मन के मौन से,
क्यों इतने भ्रम में ढले?
किसे खोजता फिरा मन,
किसकी अधूरी प्यास है?
मृग के अंतर में ही तो
कस्तूरी का वास है।
किसका रखा सहारा?
किससे अब आस है?
हर किसी की राह में
एक अधूरा ‘काश’ है।
ये ‘काश’ यूँ ही रहे,
मन में एक प्रकाश सा
हर चाह पूरी हो गई,
तो क्या बचेगा खास सा?
जो समय है पास में,
उसे सुंदर भाव दो,
जो नहीं है वश तुम्हारे,
उसको निर्मल क्षमा दो।
‘काश’ की कामनाओं में
जीवन न खो देना
जो कुछ शेष है हाथ में,
उसको ही संजो लेना।
हँसी के गीत बुनो,
जैसे चलती श्वास है
क्योंकि हर जीवन में
कुछ न कुछ ‘काश’ है।

- सविता सिंह मीरा


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ख़ुद को ढूँढने निकला हूँ कहीं पर,
मौजूद हूँ जबकि इसी ज़मीं पर!
ओझल है कम्बख़्त रूह जिस्म से,
छोड़ा था मैंने जिसको यहीं पर!
आदत नहीं गुमशुदा होने की मुझे,
ठहरा था जहाँ, मिलूँगा वहीं पर!
बदलते चेहरे पहचान ना पाया,
अब शर्मिंदा हूँ अपने यकीं पर!
खूबियों का बखां कौन करे भला,
बनता है मुद्दा दूसरे की कमी पर!
ख़ामोशियाँ चाहती हैं कुछ कहना,
बोझ बड़ा है हर इक आदमी पर!
कि पल-पल वक़्त गुज़रता देखा,
नहीं है वश किसी का ज़िंदगी पर!


- आनन्द कुमार



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सुकून की तलाश

उसे दौड़ में ही सकूँ नज़र आया,
हमें रुक के जीना हुनर नज़र आया।

वो काँधों पे ख़्वाहिश उठाए चला,
हमें हर ठहराव में घर नज़र आया।

वो जलता रहा शौक़ की रौशनी में,
हमें चाँदनी का असर नज़र आया।

वो मंज़िल के पीछे बहकता रहा,
हमें रास्तों में भी दर नज़र आया।
जो मरते रहे हर तमन्ना पे वो,
हमें जीते जी भी क़बर नज़र आया।
ये दुनिया है दौलत की दीवानी पर,
हमें इक सुकूँ ही समर नज़र आया।


- शशि धर कुमार


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मैं सवालों से जूझती, मगर जवाबों सी गहरी हूं
हां, मैं लड़की हूं- मगर खामोशी से नहीं डरी हूं
अब तारीफों से नहीं बहलती, मैं सच को पहचानती हूं।

कहते हैं मर्द दुनिया का बोझ उठाते हैं,
तो फिर औरतों के सपनों से डर क्यों खाते हैं?
जो कहते हैं हमें कमज़ोर, ज़रा आईना दिखाया जाए।

जो छिपकर चरित्र पर वार करते हैं,
उनकी नीयत को भी कभी जांचा जाए।
जिसे वो इज़्ज़त कहते हैं, उसका मतलब समझाया जाए।


- आराध्यापरी

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बेशक जिंदगी खो गयी है मोबाइल में,
जाने क्या क्या भाव छुपे हुए हैं स्माइल में,
लेकिन दोस्त आज भी जरूरी हिस्सा है, जीवन का ,
चाहे खुशी हो, गम हो या
फिर जीवन का पहिया फंसा हो कठिनाई में।
निक्कमें दोस्तों के बिना जिंदगी अधूरी है,
जिनके ख्याल ही काफ़ी है चेहरे खिलाने में,
फिर साथ की तो बात ही क्या,
बेजान में भी जान आ जाती है,
जब दोस्तों की आवाज आती है कान में।


- कंचन चौहान


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