साहित्य चक्र

15 April 2025

कविता- उम्मीद





परिस्थितियां चाहे हो कितनी भी प्रतिकूल,
उम्मीदों के लिए नही अनुकूल।

पथ में बिखरे पड़े हो चाहे कितने भी शूल
उम्मीद मन में पलता है जीवन में खिलेंगे फूल।

उम्मीद घने अँधेरों बीच जुगनू बन आता,
रेगिस्तान बीच जल सोता बन प्यास बुझाता।

पथ के पत्थरों के बीच नमी खोजकर,
हरियाली को पनपने का कारण दे जाता।

उम्मीद जख्मों के लिए एक प्यारा मरहम है,
मन में पले अगर तो हो जाता दर्द कम है।

खुशियों के लिए छोटे-छोटे पलों को देकर,
कर देता शांत मन की हर हलचल है।


                             - रूचिका राय


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