साहित्य चक्र

24 April 2025

कविता- भगौना





टाठी बिलिया पातर दोंना,
चमचा गड़इ परात भगौना।

सब कौ हिस्सा बॉट भऔ जू,
चूल्हौ चकिया मथनी मोना।

जब लौं हतौ हेत भैय्यन में,
हतौ खटोला एक बिछौना।

इक दूजे पै रऔ भरोसौ,
मिल कें बरतौ चांदी सोना।

पै अब बैर बिषा गऔ कोऊ,
बॅटत देख लऔ कोना कोना।

पंच जोर बॅटवा लइ खेती,
बिच गये चौंपे बिक गऔ सोना।

बनी साख मिट गई पुरखन की,
पांत पतई कों ठौर बचौ ना।

- राणा भूपेंद्र सिंह

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