हां मैं कविता हूं
मन की धरा पर भावों की कविता
वह क्रोंच पंक्षी के प्रेमी युगल की
पीड़ा को देख हुई थी घटित।
उस पीड़ा के अनुभव से,
हुए थे बाल्मिकी द्रवित।
और तत्क्षण ही जो शब्द,
हुआ था उच्चरित।
वही तो था प्रथम कालजयी कविता।
मन की धरा पर भावों की कविता।
हां मैं कविता हूं
जो मन की धरा पर छुपकर
चित्र उकेरा करती हूं ।
पीड़ा की नमी पाकर,
नव पल्लव सा मै खिलती हूं।
मै ही तो राधा बनकर
श्याम की बंशी बजाती हूं
मै ही तो बनकर मीरा
भक्ति की राह दिखाती हूं
मै ही द्रोपदी के चीड़ में
पीड़ा बनकर रोई हूं
मै ही तो अहिल्या बन,
निष्पाप कलंकित के अश्रु से
पाषाण बन कर सोई हूं,
हां मै ही तो हर मन की धरा पर
भावों की कविता हूं,
नेह, प्रेम व पीड़ा से सिंचित होकर
कवि के उर में बिखरती हूं।
हां मैं कविता हूं।
- रत्ना बापुली, लखनऊ

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