साहित्य चक्र

15 April 2025

एक बेजान जख्मी दिल की मोहब्बत



मैं अभी-अभी अपनी मोहब्बत को,
अंतिम विदाई देकर शमशान से आ रहा हूं!
 मैं अभी-अभी अपनी दुनिया को,
 अपने हाथों से जलाकर आ रहा हूं!
 मेरा दिल भी अब बेजान सी एक बंजर भूमि सा, 
 शमशान हो गया है !
 मेरे दिल में भी अब प्यार का अंत हो गया है!
 जब तुम थी साथ मेरे पास मेरे,
 मेरे जीवन में बसंत की बहार थी,
 अब तो मेरा ये, बंजारा दिल
 जंगल जंगल जोगी बनकर,
 डोलेगा तुम्हारी जुदाई का दर्द लिए,
 तुम्हारी जुदाई के जख्म लिए,
 मेरा ये जख्मी दिल अब, हमेशा के लिए
  तुम्हारी जुदाई की अंतहीन पीड़ा में, जलता रहेगा।

 तुम जो चली गई हो मेरी दुनिया से,
अपने साथ ले गई हो तुम मेरे वजूद को,
  मेरे दिल को, मेरे जीवित होने के एहसास को,
  मैं जो आज तुम्हारे बगैर, जीवित हूं इस संसार में
 यकीन मानो तुम मेरा
 मैं ये एक शापित जीवन लेकर भटक रहा हूं
 तुम्हारे प्यार में,
 मैं तो अब मुक्ति के इंतजार में हूं
 पूछो मत हाल मेरा तुम कि तुम्हारे बगैर
 मै,किस हाल में हूं
 बस कहने को जिंदा हूं मैं,
 अपनी रूह सें तों मै,
 तुम्हारी रूह के साथ हूं शामिल
 सच बताना तुम्हें मेरी कसम है।

 क्या मैं तुम्हारे प्यार के हूं काबिल
 अगर मैं हूं तुम्हारे प्यार के काबिल
 तो तुम मुझे अपनी यात्रा में
 अपने साथ शामिल कर लो,
 आओ मेरा साथ दो,
 और जन्नत में अपने उस खुदा से पूछ कर,
 मेरे लिए अपनी जन्नत में जगह बना लो,
 यही है मेरे जीवन की अब अंतिम इच्छा
 अब जीना नहीं है मुझे इस दुनिया में,
 तुम मुझे भी अपने साथ  
अपनी जन्नत में शामिल कर लो।


                                         - आकाश शर्मा आज़ाद


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