अस्र , नहीं पड़ता सपनों का,
चंदन तो आखिर चंदन है।
रुकने की गलती मत करना,
चलते रहना ही जीवन है।
तारीफों में कसर न छोड़ी,
सबका अपना-अपना फ़न है।
खुलकर बरसे चाहे गरजे,
होने को वैसे सावन है।
कब जाएगा सोचा कैसे,
मनमौजी होता पाहुन है।
माना मुझमें भी कमियाँ है,
उजला पर किसका दामन है।
- रामस्वरूप मूंदड़ा, बूँदी
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