अपनी उम्र के कई साल स्कूल, कॉलेज, नौकरी, गृहस्थी में बिताने के बाद मुझे अहसास हुआ है कि जीवन में अब भी कुछ अधूरा-सा हैं। मृत्यु सहज सी लगने लगी जैसे कुछ ही पलों में मृत्यु आ जायेगी, मैं बस यही सोच रही हूँ कि जीवन में आखिर खालीपन है कहाँ ?
आखिर में समझ आया कि मैं कई सालों से जीवन की भाग-दौड़ और बहदवासी भरी ज़िन्दगी के चलते एक अकेलेपन भरे कमरे में बन्द थी, उस संसार रूपी कमरे में इतनी शक्ति है कि मैं चाहकर भी अपने अनुभवों और कहानियों से उसे तोड़ नहीं सकती थी। मैं जीवन भर चलती रहीं, फिर भी एक सुकून का कोना नहीं मिला।
23 अगस्त 2019 में मेरी मुलाकात होती है रमेश जी से जिन्होंने मुझे मिलवाया, एक नये सफर से और मेरा वो सफर शुरू हुआ "ॐ शिव शंकर तीर्थ यात्रा" के साथ, जिस ने मेरे जीवन के जीने के वास्तविक मायने बदल दिये। इसके संचालक है श्याम चतुर्वेदी जी जब से मैंने इनके साथ यात्राएँ करनी शुरू कि ऐसा लगा मानो, मेरे जीवन में नये अध्याय का प्रारम्भ हुआ हो। मैंने हिमालय से कन्याकुमारी, द्वारिका से पुरी तक का सफर तय किया और सच कहूँ तो बहुत खुबसूरत रहा मेरा हर सफर।
मैंने उड़ती बर्फ, ठण्डी हवा, बहता पानी, पहाड़, चलती गाड़ियों की खिड़की से बहार देखना, हवाओं को मेरे बालों के साथ खेलना सच में मेरे लिए वो दृश्य काल्पनिक सा लग रहा था। मगर यह सच था, इतनी उम्र बिताने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि जीवन तो यात्रा ही है।
वो सारी यात्राएँ जो मैंने की श्रीलंका, भूटान, नेपाल, दार्जिलिंग, कश्मीर, केरल द्वारिका, कैलाश मानसरोवर, दुबई, तीन धाम ग्यारह ज्योतिर्लिंग, मनाली आदि वो मुझे मेरे जीवन के सबसे खूबसूरत पलों में से एक हैं। बहुत ही आरामदायक सफर रहा मेरा इन बीते सालों में और मैं यही सलाह दूंगी कि अगर शान्तिपूर्ण और सहज यात्राएं करनी है तो ॐ शिव शंकर तीर्थ यात्रा सेक्टर-9, मालवीय नगर, जयपुर के साथ कीजिए।
जीवन को जीने का आपका नज़रिया बदल जाएगा। मैं किसी विशेष या किसी कंपनी के प्रचार के लिए नहीं बोल रही हूँ। मैंने वास्तविकता में अपने जीवन में बहुत यात्राएं की हैं, लेकिन ऐसी यात्राएँ जिसमें सभी यात्री पारिवारिक माहौल बनाएं, शुद्ध सात्विक वचन और भोजन रखें यात्रा करें, मैंने कभी नहीं देखा था। मगर वो मैंने यहाँ देखा और महसूस किया।
मैं अपनी यात्रा के कुछ अनुभवों को आपके साथ साझा करती हूँ-
भारत की विविधता को करीब से देखने की चाह ने मुझे एक लंबी यात्रा पर निकलने के लिए प्रेरित किया। यह कोई साधारण यात्रा नहीं थी। यह आत्म की खोज, संस्कृति-साक्षात्कार और सौंदर्य-प्रेम की एक जीवंत यात्रा थी। मैंने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक भारत के प्रमुख शहरों, गाँवों, पहाड़ों, सागरों और रेगिस्तानों की यात्रा की।
उत्तराखंड में ऋषिकेश की गंगा आरती और हरिद्वार की धार्मिकता ने मेरी आत्मा को छू लिया। मनाली और शिमला की बर्फीली वादियाँ और हिमालय की ऊँचाई किसी स्वप्नलोक से कम नहीं थीं।
पश्चिम भारत- रंग, रेगिस्तान और शौर्य राजस्थान में जयपुर, उदयपुर और जैसलमेर के किलों और हवेलियों ने राजसी संस्कृति से परिचय कराया। जबकि गुजरात में कच्छ का रण सफेद नमक से ढका था। सूरज डूबने के बाद का दृश्य आज भी आँखों में बसा है। महाराष्ट्र में मुंबई की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी और गेटवे ऑफ़ इंडिया की शाम साथ ही अजंता-एलोरा की गुफाओं ने प्राचीन कला से अवगत कराया।
दक्षिण भारत- प्रकृति, मंदिर और आत्मिक शांति केरल में हाउसबोट पर बिताई गई रातें, मुन्नार की चाय बगान और कोवलम का समुंदर शांतिदायक थे। तमिलनाडु के मदुरै और रामेश्वरम के मंदिरों ने भक्ति से भर दिया।कर्नाटक में मैसूर पैलेस और हम्पी के खंडहरों की कहानी अनसुनी और अद्भुत थी। आंध्र प्रदेश में तिरुपति बालाजी के दर्शन कर मेरी इस यात्रा को एक आध्यात्मिक ऊँचाई मिली।
पूर्व भारत- संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और जनमानस कोलकाता में साहित्य, दुर्गा पूजा और रसगुल्ले ने मन मोह लिया। ओडिशा में कोणार्क सूर्य मंदिर और पुरी का समंदर जीवन में एक शांत ठहराव लेकर आया। उत्तर-पूर्व भारत में असम के चाय बगान, मेघालय के जीवित जड़ों के पुल और सिक्किम की बर्फीली चोटियाँ मानो प्रकृति की गोद में समय थम गया हो।
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में उतरते ही भारतीय संस्कृति की झलक मिलती है। यहां से रामायण यात्रा की शुरुआत होती है।
मुन्नेश्वरम मंदिर (चिलाव)- यहीं वह स्थान है जहाँ भगवान राम ने रावण वध के बाद ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। इसके अलावा मांनावर मंदिर जहाँ राम ने शिवलिंग स्थापित कर पूजा की थी। यह स्थान भी चिलाव के पास है।
सीता एलिया (नुवारा एलिया)- यह वह स्थान माना जाता है, जहाँ रावण ने सीता माता को अशोक वाटिका में रखा था। यहाँ सीता अम्मन मंदिर भी स्थित है, जो माता सीता को समर्पित है।
भारत की यात्रा सिर्फ एक देश घूमने की नहीं, बल्कि आत्मा के हर कोने को छूने की प्रक्रिया है। यहाँ की विविधता, रंग-बिरंगी संस्कृति, स्वादिष्ट व्यंजन और अतिथि सत्कार मुझे आज भी बार-बार याद आते हैं। मेरी यह यात्रा केवल स्थानों की नहीं, भावनाओं और अनुभवों की थी। एक ऐसा अनुभव जिसे मेरे लिए शब्दों में समेटना बहुत ही मुश्किल है।
अनिता रोहलन 'आराध्यापरी'
निवासी- लाछड़ी, डीडवाना, राजस्थान





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