इंटरनेट और मोबाइल के बगैर दुनिया
अगर हमारे पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं हो-तो हमारे कुछ जरूरी कार्यों की गति जरूर धीमी पड़ जाएगी पर हमारे संपर्क बढ़ जाएंगे ,व्यस्त लाईफ के बाद भी हम पुनः पहले सा समय निकालना, लोगों से मिलना मिलाना शुरू कर देंगे। नये अनुभव हमारे मस्तिष्क को ऊर्जा देंगें।
चूंकि अभी हम मोबाइल और इंटरनेट में इतना डूबे रहते हैं कि खाना खाने का समय नहीं रहता या खाना फुर्सत से खा ही नहीं पाते। खाना खाते खाते भी कुछ काम याद आ जाते हैं बीच बीच में उन्हें भी करने लगते हैं। दूसरा मोबाईल और इंटरनेट नहीं होगा तो हम परिवार के प्रत्येक सदस्य को थोड़ा थोड़ा समय फिर भी दे पाएंगे।
गृह कार्यों की कार्य योजनाएं उनसे डिस्कस कर सकेंगे। ये माना कि मोबाइल इंटरनेट आज आवश्यकता बन गये हैं परंतु! इसके बगैर भी जिंदगी सुखद है, भार मुक्त महसूस करते हैं लोग।
- राणा भूपेंद्र सिंह
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मोबाइल के बिना जीवन मुश्किल
आज मोबाइल और इंटरनेट जीवन का अभिन्न अंग बन गये हैं। जिनके बिना इंसान नीरस, निशक्त और बेबस नज़र आ रहा है। हाथ में मौजूद यह मोबाइल हर प्रकार की सूचनाएं प्रदान करने के अलावा अनेकों सोशल मीडिया पर जुड़ने का ज़रिया है। लेकिन अत्यधिक मोबाइल फ़ोन की लत से मानव जीवन प्रभावित भी हो रहा है। पूरे दिन मोबाइल पर व्यस्त रहने के कारण इंसान के पास अपने परिवार के लिये समय का अभाव है। वह हर प्रकार का मनोरंजन सिर्फ मोबाइल में खोज रहा है, लेकिन वास्तविक ज़िंदगी की सुखद अनुभूतियों से क्षीण हो गया है।
कुछ वर्ष पहले तक हम परम्परागत तरीके से जीवन यापन करते थे। लोगों का आपस में भावनात्मक जुड़ाव दिखता था। परिवार साथ बैठकर अनेक मुद्दों पर विचार विमर्श करता था। बच्चे शारीरिक विकास वाले खेल खेलते थे और किताबों से प्रेम करते थे। परन्तु मोबाइल और इंटरनेट की खोज ने संसार में व्यापक परिवर्तन ला दिया है।
मैं फिर से जीना चाहता हूँ वही ज़िंदगी। जब मेरा ध्यान मोबाइल पर ना होकर जीवन के उद्देश्यों की तरफ़ हो। मिलना चाहूँगा अपने सभी मित्रों और रिश्तेदारों से। व्यक्त करना चाहूँगा जीवन के अनुभवों को। खो जाना चाहता हूँ उन यादों में जिनसे बाहर निकलना शायद आज भी नामुमकिन है। आज के युग में यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि 'रोटी, कपड़ा और मकान' के बाद मोबाइल भी जीवन की आवश्यकता बन गया है।
- आनन्द कुमार
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अगर मेरे पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं हो तो एक बार फिर मैं लौट जाता अपनी उस ज़िंदगी में जहां आकांक्षाएं,तनाव और बेसब्री कम होती और होता सुकून। बेशक आदतन थोड़ी सी तकलीफ़ ज़रूर होती तेज़ संचार के अभाव में लेकिन,एक बार अहसास होता रिश्ते, दोस्ती और भावनाओं के पल।
फ़िक्र नहीं होती कि मेरे मौज के पलों पर कोई अनचाहा अतिक्रमण अकस्मात होगा,या कि दर्द से तत्काल राहत मिलेगी। खो जाता एक बार फिर अपनी किताबों की दुनिया में ! वो नन्हे सम्राट, चंदामामा,नंदन और बालहंस की दुनिया में !
बेशक ये इंटरनेट और मोबाइल की दुनिया तेज़ है पर मुझे शिकायत है इस बनावटी दुनिया से कि जहां सभी को कोई काम भी नहीं है लेकिन फुर्सत भी नहीं है। काश कि एक बार फिर वो दुनिया लौट आती। थोड़े धीमे हम ज़रूर हो जाते पर जिंदगी बावक्त जी लेते।
- कुणाल
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मैं एक छोटे से शेर के साथ लिखना चाहूंगा...
कि साहेब ! एक वक़्त था जब लोगों की खैरियत,
छोटों की इबादत, घरों में संस्कार और बड़ों की बंदगी थी।
और जब ये मोबाइल, व्हाट्सअप, फेसबुक
और इन्टरनेट नहीं थे तो तब ज़िन्दगी थी।
आज हम पापा को सर झुकाकर प्रणाम नहीं करते बल्कि सुबह-सुबह नेट से गुड मॉर्निंग वाले मैसेज कॉपी करके पापा को सेंड कर देते हैं साथ में प्रणाम वाले इमोजी भी और पापा भी 'खुश रहो' वाले इमोजी भेज देते हैं। जब मम्मी गुस्सा होती हैं तो लाल इमोजी गुस्से वाली भेज देती हैं और हम रेड वाला दिल इमोजी भेज देते हैं और पापा जब गुस्सा होते हैं तो झापड़ वाले इमोजी भेज देते हैं, फिर हम भी इधर से आऊं आऊं रोने वाले इमोजी भेज देते हैं।
आजकल का प्यार मोबाइल में उलझ के कहि खो गया है। आज हम पोस्ट मैन चाचा को नहीं जानते जो कुछ सालों पहले घर आते थे चिट्ठियां लेकर तो घंटो बतियाते थे। आज हम मदर डे के दिन मम्मी के साथ वाली तस्वीर ढूंढ के डीपी लगा देते हैं तो वही फादर डे वाले के दिन पापा के साथ वाली।
अब हम दोस्तों के साथ गुल्ली डंडा, लुका-छिपी, क्रिकेट और कबड्डी खेलने के लिए गाँव में या फिर ग्राउंड में नहीं जाते बल्कि सारे फ्रेंड्स अब PUB-G खेलते हैं घरों में बैठकर। आज हम दोस्तों के दुःख को उसके साथ रह कर नहीं जानते बल्कि उसका सेड स्टेट्स देखकर पता लगाते हैं फिर इधर से हम भी सेड वाली इमोजी भेजकर दोस्त का दुःख शेयर कर लेते हैं।
अब हम दोस्तों के घर जाके अंकल का हाल चाल नहीं पूछते बल्कि व्हाट्सअप पर मैसेज कर के पता लगा लेते हैं। पहले हम दोस्तों के बगैर मां-बाप के बगैर दो दिन नहीं रह पाते और आज फ़ोन नहीं पास में रहता तो मानो जैसे ज़िन्दगी में अकेले ही आये थे और अकेले हैं भी ज़िन्दगी में।
और अंत भी मैं एक शेर के साथ करना चाहूंगा-
अब बात करने की फुर्सत कहाँ किसी के पास,
नेट पर कभी ऑनलाइन दिख जाएँ तो समझ लेना सब खैरियत है।
बेशक इंटरनेट आने से हमारी सुविधाएं बढ़ी हैं,
लेकिन अपनों से दूरियां भी बढ़ गयी है।
- विकास कुमार शुक्ल
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काश! अगर ऐसा होता
ऐसा असंभव है, पर मान लिया की यह संभव हो जाए। मेरे पास अगर मोबाइल और इंटरनेट नहीं रहे तो मैं उस समय को सुकाल (अच्छा समय) कहूंगा। मैं भ्रम से निकल हकीकत की दुनियां में प्रवेश करुँगा।
अपने घर वालों के बीच बैठकर बातें करुंगा, घर के कार्यों में सहयोग करुंगा। अपने मित्रों के संग हंसी-मजाक करते हुए समय पास करूंगा। पुराने समय के अनुसार थांई-अथाई/चौपालों को समय देते हुए भी मन लगाकर अपने व्यवसाय को भी करुंगा। अगर ऐसा होता है तो मुझमें उपजा एकाकीपन व असामाजिकता दोनों से छुटकारा मिल जाएगा। ये मेरे जीवन के लिए सुखद रहेगा ।
- व्यग्र पाण्डे
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मोबाइल और इंटर नेट के बिना मेरा जीवन
आज का समय मोबाइल फोन और इंटरनेट के बिना अधूरा है। मेरे पास जब भी समय होता है तो मोबाइल का उपयोग कर लेती हूं। अपने मनोरंजन के लिए। अगर जब इंटरनेट या मोबाइल ना हो तो मैं भी अपनी अच्छी यादों को तरो ताज़ा कर लेती हूं, जैसे किताबें पढ़ने के साथ गाने भी गाती हूं या फिर घूमने निकल जाती हूं। और चली जाती हूं प्रकृति की गोद में जहां मेरा बचपन बीता उन सहेलियों के साथ जिनके साथ बचपन बीता।
अपने जन्मदाता माता-पिता की यादों में खो जाना फिर कभी उनकी यादों में रोना हंसना। भाई-बहनों को याद करना और फिर उनके साथ बिताए वो सारे पल याद करती हूं। अपने बच्चों को याद करना प्यार करना सब याद आता है। और सबसे प्यार रिश्ता तो हमारे पालतू का होता है, उसको खिलाना पिलाना घूमना उसको प्यार करना यही दिनचर्या होती है।
जब इंटरनेट नहीं होता और कई बार होने के बावजूद भी सबको टाइम देना प्यार के कारण फोन करना सबको याद करना अपनी व्यस्त जिंदगी में मुझे मिल ही जाता है। मुझे तो पौधों से भी प्यार है, उनको पानी देना उनसे बातें करना, घर का ध्यान और इस भाग दौड़ वाली जिंदगी से समय निकाल के यह सब करना आदि मेरी दिनचर्या होती है।
- सुमन डोभाल काला
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इंटरनेट से दूर प्रेम की तलाश
मोबाइल और इंटरनेट, अगर मेरे पास नहीं हो तो सबसे पहले, मैं सुकून महसूस करूंगी। आज कल की भाग दौड़ वाली व्यस्त जिंदगी में जो थोड़ा वक्त अपने और अपनों के लिए मिलता है, वो भी ऑनलाइन प्रोजेक्ट, मीटिंग और रिपोर्ट बनाने में निकल जाता है। फिर सोशल मीडिया के मंच पर दिखावटी खुशियों को बांटने और समेटने में समय निकल जाता है।
अतः मैं खुद के साथ वक्त बिताऊंगी। पुस्तकों में झांककर, स्वयं का प्रतिबिंब ढूंढूंगीं। डायरी उठाकर कलम से अपनी कल्पनाओं को शब्दों में उकेरूंगी। प्रकृति को स्पर्श कर, अपने पौधों से पूछूंगी तुम सब ठीक हो ना ? दोस्तों से कहूंगी, चलो मिलते है फिर पुरानी गालियों में, जहां बातों का सिलसिला आज भी हमें याद करते हैं। अपनों में समाएं अपनेपन को तरासूंगी। और अंत में वक्त मिला तो नफ़रत के शहर से निकलूंगी प्रेम की तलाश में।
- सुतपा घोष
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दिमाग को आराम मिलेगा
अगर हमारे पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं हो तो हम अच्छी-अच्छी किताबें पढ़ेंगे, और बाग-बगीचे की देखभाल करेंगे, खाली समय में हम कुछ फूलों की क्यारियां बनाकर उनमें पानी देंगे। ताकि वह अच्छे से फूल सकें।
कुछ समय अपने बच्चों के साथ एक साथ बैठकर चर्चा करेंगे। कोई कहानी, कविता, गीत, सुनाकर बच्चों का और खुद को भी व्यस्त रखेंगे। हमें मोबाइल की आदत ने इतना आदी बना दिया कि उससे कुछ पल के लिए दूरी रहेगी। जिससे हमारे दिमाग को आराम मिलेगा। कुछ समय परिवार के साथ बैठकर थोड़ी हंसी ठिठोले लगाऊंगी।
- रामदेवी करौठिया
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खुद की तलाश करूंगी
अगर मेरे पास मोबाइल और इंटरनेट नहीं हो, तो मैं समय को किताबें पढ़ने, प्रकृति के साथ और लिखने में लगाऊंगी। परिवार और दोस्तों के साथ संवाद को प्राथमिकता दूंगी। योग, ध्यान और शारीरिक गतिविधियों से खुद को स्वस्थ रखूंगी। अपने कौशल को निखारने के लिए नए शौक अपनाऊंगी, जैसे चित्रकारी या हस्तशिल्प आदि। समाजसेवा के माध्यम से दूसरों की मदद करने की कोशिश करूंगी। तकनीक के बिना मैं अपने अंदर की शांति और रचनात्मकता को खोजने का प्रयास करूंगी। इस समय को आत्मचिंतन और खुद को बेहतर बनाने में उपयोग करूंगी।
- डॉ. सारिका ठाकुर
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नज़र का टीका लगा दूंगी
सिर्फ और सिर्फ मनपसंद किताबें पढूंगी और मन भर जाएगा तो कुछ देर बाहर की सैर करूंगी और वो काम भी निपटा लूंगी, जो मोबाइल की वजह से कहीं अँधेरे में छिपा दिए, कुछ पौधे जिनको मैंने भुला दिया। उनको भी खाद पानी लगा दूंगी, बच्चे जो अलग-अलग कमरे में होते है, उनको पास बिठाकर मुस्कुराते हुए नजर वाला टीका लगा दूंगी।
- सीमा मौर्या
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मोबाइल फोन से दूर
वर्तमान समय में मोबाइल फोन हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। परंतु हम यह सोचे की मोबाइल फोन यदि हमारे जीवन में ना हो तो हमारी दिनचर्या कैसी होगी? निश्चित ही वर्तमान से भिन्न होगी। यदि मैं मोबाइल फोन व इंटरनेट का उपयोग ना करूं तो दिन में 4 घंटे बचा सकती हूं और रात्रि में जल्दी सो सकती हूं और सुबह जल्दी उठ सकती हूं ।अपने भाव और कल्पनाओं को लखनी के माध्यम से एक रूपरेखा प्रदान कर सकती हूं। कुछ अधिक समय मै अपने परिवार तथा बच्चों के साथ बिताती। थोड़ा समय अपने घर के बगीचे को भी देती।
- अनुरोध त्रिपाठी
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