मेरा सब्जी वाला
सचमुच बहुत अच्छा आदमी है
वह रोज सवेरे मुझे हंस कर
जयश्री राम कहता है
मेरा दिन अच्छा जाए ऐसी
शुभेच्छा भी देता है
इसके बाद मेरी भावताल की
झिकझिक शुरू होती है
कभी उसकी मटर सड़ी होती है
तो कभी टमाटर गले होते हैं
उसकी अन्य चीजों का भी
कोई ठिकाना नहीं होता
पर वह मुझसे अपने संसार की बातें करता है
और मृदुता से जान लेता है कि
मेरा भी सब ठीक चल रहा है
अपने चेहरेमोहरे के लिए या
अपनी सुघड़ता के लिए
वह मुझे अच्छा लगता है ऐसा नहीं है
वह मुझे अच्छा लगता है क्योंकि
भावताल की जंग में
मैं उसे हमेशा हरा सकता हूं
और मेरी प्रत्येक प्रभात
विजय की मुस्कराहट के साथ शुरू होती है।
- वीरेंद्र बहादुर सिंह
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