साहित्य चक्र

22 January 2025

कविता- टूट गये



जब इश्क़ के सारे वादे टूट गये,
विश्वास के कच्चे धागे टूट गये!


जान ही बची थी जिस्म में सिर्फ़,
हम याद में उनकी आधे टूट गये!

आरज़ू दिल की हो ना पाई पूरी,
उससे पहले सब इरादे टूट गये!

कैसे जीतता बादशाह शतरंज में,
देखते-देखते सब पियादे टूट गये!

जो ख़्वाब पीछे बचा रखे थे,
वो सब जिंदगी में आगे टूट गये!

एक चाँद था जुगनुओं के साथ,
फिर धीरे-धीरे सब तारे टूट गये!

किस्सा हक़ीक़त बन ना पाया,
नींद खुली ख़्वाब सारे टूट गये!


- आनन्द कुमार


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