साहित्य चक्र

30 January 2025

प्रेम स्वीकारना



प्रेम कई बार हमें उलझा देता है, क्योंकि हमें पता नहीं होता है कि प्रेम को कैसे स्वीकार करना है। हम डरने लगते हैं और हमारा मस्तिष्क विभिन्न कल्पनाओं की उलझन में फंस जाता है। 





इससे बाहर निकलना हमारे लिए युद्ध से बाहर निकलने जैसा होता है, क्योंकि हमने कभी महसूस ही नहीं किया होता है कि हम कौन हैं। हम सभी प्रेम से बने होते हैं, मगर प्रेम का ‘प’ तक नहीं जाते हैं। 

प्रेम हमें खुद से जोड़ता है यानी खुद से प्रेम करना सीखता है। इसलिए प्रेम स्वीकार करने से पहले हमें खुद से प्रेम करना होता है। तभी हम दूसरों के प्रेम को स्वीकार कर पाते हैं।

                                                                - दीपक कोहली

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